Customize Consent Preferences

We use cookies to help you navigate efficiently and perform certain functions. You will find detailed information about all cookies under each consent category below.

The cookies that are categorized as "Necessary" are stored on your browser as they are essential for enabling the basic functionalities of the site. ... 

Always Active

Necessary cookies are required to enable the basic features of this site, such as providing secure log-in or adjusting your consent preferences. These cookies do not store any personally identifiable data.

No cookies to display.

Functional cookies help perform certain functionalities like sharing the content of the website on social media platforms, collecting feedback, and other third-party features.

No cookies to display.

Analytical cookies are used to understand how visitors interact with the website. These cookies help provide information on metrics such as the number of visitors, bounce rate, traffic source, etc.

No cookies to display.

Performance cookies are used to understand and analyze the key performance indexes of the website which helps in delivering a better user experience for the visitors.

No cookies to display.

Advertisement cookies are used to provide visitors with customized advertisements based on the pages you visited previously and to analyze the effectiveness of the ad campaigns.

No cookies to display.

Home अन्य एबीसी पत्रकार अवनी दास ने भारत के संविधान को लेकर फैलाया झूठ
अन्यराजनीतिहिंदी

एबीसी पत्रकार अवनी दास ने भारत के संविधान को लेकर फैलाया झूठ

Share
Share

ऑस्ट्रेलियाई मीडिया एबीसी की पत्रकार अवनी दास ने हाल ही में अपनी एक डॉक्यूमेंट्री वीडियो में दावा किया, ‘जब भारत ने 1947 में ब्रिटिश साम्राज्य से स्वतंत्रता प्राप्त की, उस समय संविधान में यह उल्लेख किया गया था कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है। इसका मतलब है कि यह सभी धर्मों के प्रति सम्मानपूर्ण और सभी के प्रति ‘ओपन‘ देश है। संविधान के पृष्ठ 33 पर शब्द ‘सेक्युलर’ स्पष्ट रूप से उल्लेखित है।’ हालांकि जांच में यह दावा भ्रामक पाया गया है।

यह भी पढ़ें: बाराबंकी में सीएम योगी के बुलडोजर के कहर का दावा भ्रामक है

फैक्ट चेक

दावे की पड़ताल में हमें अमर उजाला द्वारा प्रकाशित 01 दिसंबर 2019 की रिपोर्ट मिली। रिपोर्ट के अनुसार, ‘भारत के संविधान की प्रस्तावना जब तैयार की गई तो इसमें प्रारंभ में ‘सेक्युलर’ शब्द शामिल नहीं था। साल 1976 में आपातकाल के दौरान संविधान (42वें संशोधन) में संशोधन किया गया जिसमें ‘सेक्युलर’ शब्द को शामिल किया गया। जनसत्ता द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार, ‘सोशलिस्ट और सेक्युलर शब्द मूल रूप से प्रस्तावना का हिस्सा नहीं थे। इन्हें तत्कालीन प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी द्वारा आपातकाल के दौरान संविधान (42वां संशोधन) अधिनियम 1976 द्वारा जोड़ा गया था।’

पड़ताल में भारतीय संविधान का मूल संस्करण पाया गया। असली भारतीय संविधान की प्रस्तावना में लिखा था:”हम, भारत के लोग, भारत को एक [ संपूर्ण प्रभुत्व-संपन्न लोकतंत्रात्मक गणराज्य ] बनाने के लिए, तथा उसके समस्त नागरिकों को :सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्मऔर उपासना की स्वतंत्रता,प्रतिष्ठा और अवसर की समताप्राप्त कराने के लिए,तथा उन सब मेंव्यक्ति की गरिमा और 2[ राष्ट्र की एकता और अखंडता] सुनिश्चित करने वाली बंधुताढ़ाने के लिएदृढ़संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख 26 नवम्बर, 1949 ई० ( मिति मार्गशीर्ष शुक्ला सप्तमी, संवत् दो हजार छह विक्रमी) को एतद्द्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं।”

Source- Library of Congress

वहीं प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा किए गए संशोधन के बाद प्रस्तावना में लिखा गया:”हम, भारत के लोग, भारत को एक [ संपूर्ण प्रभुत्व-संपन्न समाजवादी पंथनिरपेक्ष लोकतंत्रात्मक गणराज्य ] बनाने के लिए, तथा उसके समस्त नागरिकों को :सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्मऔर उपासना की स्वतंत्रता,प्रतिष्ठा और अवसर की समताप्राप्त कराने के लिए,तथा उन सब मेंव्यक्ति की गरिमा और 2[ राष्ट्र की एकता और अखंडता] सुनिश्चित करने वाली बंधुताढ़ाने के लिएदृढ़संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख 26 नवम्बर, 1949 ई० ( मिति मार्गशीर्ष शुक्ला सप्तमी, संवत् दो हजार छह विक्रमी) को एतद्द्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं।”

दरअसल संविधान सभा ने प्रस्तावना में ‘सेक्युलर’ और ‘सोशलिस्ट’ शब्दों को शामिल करने पर विशेष चर्चा की और इसे न करने का निर्णय लिया। के टी शाह और ब्रजेश्वर प्रसाद जैसे सदस्यों ने इन शब्दों को प्रस्तावना में जोड़ने की मांग की, जिसके जवाब में डॉ बी.आर. अंबेडकर ने तर्क दिया, ‘मेरे विचार में, इस संशोधन में जो सुझाव दिया गया है वह पहले से ही प्रस्तावना के मसौदे में शामिल है।’ बी.आर. अंबेडकर ने आगे कहा कि संविधान में ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्द शामिल करने की कोई आवश्यकता नहीं है क्योंकि पूरे संविधान में धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र की अवधारणा समाहित है। इसका अर्थ है कि धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं किया जाएगा और सभी नागरिकों को समान अधिकार और स्थिति प्रदान की जाएगी।

Source- The Hindu

‘समाजवादी’ शब्द को संविधान में शामिल करने पर बी.आर. अंबेडकर ने कहा कि यह लोकतंत्र के सिद्धांत के खिलाफ है कि संविधान में तय किया जाए कि भारत के लोग किस प्रकार के समाज में रहेंगे। आज के समय में यह संभव है कि अधिकांश लोग समाजवादी समाज संगठन को पूंजीवादी समाज संगठन से बेहतर मानें। लेकिन विचारशील लोगों के लिए, इससे भी बेहतर कोई अन्य सामाजिक संगठन विकसित किया जा सकता है जो आज के या कल के समाजवादी संगठन से श्रेष्ठ हो। इसलिए मुझे समझ में नहीं आता कि संविधान को लोगों को किसी विशेष रूप में रहने के लिए बाध्य करना चाहिए, यह निर्णय लोगों को स्वयं लेने देना चाहिए।

पड़ताल में यह भी पता चला कि एबीसी न्यूज ने अवनी दास के फेक न्यूज पर सफाई देते हुए कहा कि नरेंद्र मोदी पर बने डॉक्यूमेंट्री, जिसे 5 जून को पब्लिश किया गया था, उसमें ‘भारत के मूल संविधान में सेकुलर’ होने का दावा गलत था।’

निष्कर्ष: एबीसी पत्रकार अवनी दास द्वारा यह दावा करना कि भारतीय संविधान में 1947 से ही ‘धर्मनिरपेक्ष’ लिखा गया है, भ्रामक है। सच्चाई यह है कि आपातकाल के दौरान, इंदिरा गांधी ने 42वें संशोधन के तहत ‘धर्मनिरपेक्ष’ यानी ‘सेक्युलर’ शब्द को संविधान में जोड़ा था।

Share