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आतंकवादी अब्दुल करीम टुंडा को सोशल मीडिया में बताया गया बेगुनाह मुसलमान

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अजमेर की टाडा कोर्ट ने 1993 के सीरियल बम ब्लास्ट केस में आतंकी अब्दुल करीम टुंडा को बरी कर दिया है। इसके अलावा दो आरोपियों इरफ़ान और हमीदुद्दीन को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई है। यह खबर सामने आते ही एक खास वर्ग की जमात सोशल मीडिया पर आतंकी अब्दुल करीम टुंडा को बेगुनाह मुसलमान बता रहे हैं। हालांकि हमारी पड़ताल में यह दावा भ्रामक निकला।

पत्रकार वसीम करम त्यागी ने एक्स पर लिखा, ‘1993 बम धमाकों के मामले में अभियुक्त अब्दुल करीम टुंडा को कोर्ट ने बरी कर दिया है। अब्दुल करीम की गिरफ्तारी के वक्त मीडिया प्रिंट/इलैक्ट्राॅनिक अदालत से पहले ही जज बनकर उन्हें खूंखार आतंकी साबित कर चुके थे। अब अब्दुल करीम टुंडा को कोर्ट ने बरी कर दिया है अब क्या भारतीय मीडिया अपनी बेशर्मी बेग़ैरती और मुस्लिम दुश्मनी के लिए माफी मांगेगी? नहीं! क्योंकि बेज़मीर लोगों से ऐसी उम्मीद रखना ही बेईमानी है।’

अनसार इमरान ने लिखा, ‘न्याय व्यवस्था की उत्तम मिसाल आज 30 साल पुराने सीरियल ब्लास्ट केस में अब्दुल करीम टुंडा को अजमेर की टाडा कोर्ट ने बरी किया है। न्याय की इससे बढ़िया मिसाल मिल सकती है क्या जिसमें एक बेगुनाह व्यक्ति की आधी उम्र जेल में आतंकवादी के ठप्पे के साथ गुजर जाए।’

कट्टरपंथी अली सोहरब ने लिखा, ‘”हिंदू धार्मिक ग्रंथ संविधान, गीता के नए संस्करण की खुबसूरती”: मात्र 31 साल बाद एक मुसलमान (अब्दुल करीम टुंडा) 1993 सीरियल ब्लास्ट मामले में सभी आरोपों से हुए “बाइज्जत” बरी…’

डॉ. हमीद रजा ने लिखा, ‘इस देश की खूबसूरती तो देखो.! नाम: अब्दुल करीम जुर्म: मुसलमान होना देश का कानून: सबके लिए बराबर कोर्ट का फैसला: बा इज्ज़त बरी कैदी: 31 सालों तक बिना किसी पुख्ता सबूत के। उस वक्त मौजूदा सरकार: कांग्रेस जब कोई सुबूत नहीं था तो 31 सालों तक जेल में कैद क्यों रखा? जवाब: मुसलमान होना’

जीशान ने लिखा, ‘क्या मज़लूम “अब्दुल करीम” टुंडा के 31 साल वापस मिलेंगे.? जब कोई सुबूत नहीं था तो 31 सालों तक जेल में कैद क्यों रखा.? जवाब: मुसलमान होना!’

फैक्ट चेक

पड़ताल में हमें पत्रिका की वेबसाइट पर 10 अक्टूबर 2017 को प्रकाशित एक खबर मिली। खबर के मुताबिक 1996 के सोनीपत बम धमाकों में अब्दुल करीम टुंडा को अदालत ने उम्रकैद की सजा सुनाई। अब्दुल करीम टुंडा पर हरियाणा के सोनीपत में 1996 में हुए 2 बम धमाकों का आरोप लगा था। सोनीपत में 28 दिसंबर 1996 को दो स्थानों पर बम ब्लास्ट हुए थे। उस दिन शाम 5:05 बजे पर पहला धमाका बस स्टैंड के पास स्थित बावा सिनेमा हाल में हुआ था। उसके 10 मिनट बाद दूसरा धमाका गीता भवन चौक स्थित गुलशन मिष्ठान भंडार के बाहर हुआ।

Source: Patrika

one India की रिपोर्ट में सुनवाई के दौरान टुंडा ने एडिशनल डिस्ट्रिक्ट एंड सेशन जज डॉ. सुशील गर्ग की कोर्ट में अपने बयान में कहा था कि टुंडा सोनीपत ब्लास्ट के समय पाकिस्तान में था। वहीं बांग्लादेश में बम बनाने के दौरान ब्लास्ट हो गया जिसमें उसका बायां हाथ उड़ गया। इसके बाद उसे टुंडा के नाम से लोग बुलाने लगे। वह देसी तकनीक से बम बनाना सिखाता था। लश्कर ए तैयबा जैसे आतंकी संगठनों में उसकी भारी डिमांड थी। वह 1985 में आईएसआई से ट्रेनिंग ले चुका था।

वहीं 10 अक्टूबर 2017 को प्रकाशित न्यूज़ 18 की रिपोर्ट में बताया गया है कि 26/11 हमले के मामले में भारत ने पाकिस्तान से अब्दुल करीम टुंडा समेत 20 आतंकियों को सौंपने की मांग की थी। डॉन दाऊद इब्राहिम के करीबी माना जाने वाला टुंडा मिडिल ईस्ट में टेरर फंडिंग को बढ़ावा देने भी शामिल रहा है। यही नहीं, 1993 के मुंबई बम धमाकों में भी उसकी भूमिका रही है। आतंकी टुंडा ने साल 2010 में दिल्ली में हुए कॉमनवेल्थ गेम्स में भी धमाके की साजिश रची थी। हालांकि, उसके दो साथियों के गिरफ्तार होने के बाद ये साजिश नाकाम हो गई।

निष्कर्ष: हमारी पड़ताल में स्पष्ट है कि अब्दुल करीम टुंडा कोई निर्दोष और बेगुनाह व्यक्ति नहीं है। टुंडा को केवल 1993 के केस में बरी किया गया है। 1996 के सोनीपत बम धमाकों में अब्दुल करीम टुंडा को उम्रकैद की सजा सुनाई गई है। इसके अलावा टुंडा के पकिस्तान से लेकर लश्कर-ए-तैयबा जैसे आतंकवादी संगठन तक संबंध हैं, जिससे साबित होता है कि वह बड़ा आतंकी है।

दावा आतंकवादी नहीं बेगुनाह है अब्दुल करीम टुंडा।
दावेदार अली सोहरब, वासिम अकरम त्यागी, अंसार इमरान व अन्य
फैक्ट चेक भ्रामक

 

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