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अम्बेडकर विवाद में अरविन्द केजरीवाल ने पुरानी योजना को फिर से किया लॉन्च, 4 साल में मात्र 4 दलित छात्रों को मिली थी स्कॉलरशिप

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बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर को लेकर सियासी पारा चढ़ा हुआ है। वहीं दिल्ली चुनाव की तैयारियों में जुटे पूर्व सीएम अरविंद केजरीवाल ने बाबा साहेब के सम्मान में ‘डॉ. आंबेडकर स्कॉलरशिप’ का ऐलान किया है। इसके तहत दिल्ली सरकार द्वारा दलित समुदाय के छात्रों को विदेश में पढ़ने के लिए सहायता राशि दी जाएगी। हालाँकि पड़ताल में पता चलता है कि अरविन्द केजरीवाल ने अपनी पुरानी योजना को फिर से लॉंच किया है।

अरविंद केजरीवाल ने ‘डॉ. आंबेडकर स्कॉलरशिप’ का ऐलान करते हुए एक्स पर लिखा, ‘जो दलित छात्र विदेश में पढ़ना चाहते हैं उनका सारा खर्चा हमारी सरकार उठाएगी। इसके लिए हम डॉ. अंबेडकर सम्मान स्कॉलरशिप शुरू करेंगे।’

दिल्ली की मुख्यमंत्री आतिशी ने लिखा, ‘इस देश में हर बच्चे को अच्छी शिक्षा देने के बाबा साहेब के सपने को अगर कोई नेता पूरा कर रहा है, तो वो @ArvindKejriwal जी हैं। अरविंद केजरीवाल जी ने यह सुनिश्चित किया है कि पैसों की कमी कभी किसी की प्रतिभा के आड़े न आए। इसलिए ‘डॉ. अंबेडकर सम्मान स्कॉलरशिप’ के तहत ‘आप’ सरकार दलित समाज के उन प्रतिभाशाली बच्चों की उच्च शिक्षा का पूरा खर्च उठाएगी, जो अपनी मेहनत और काबिलियत के दम पर विदेश की किसी भी टॉप यूनिवर्सिटी में दाखिला लेंगे। ये बाबा साहेब के सपनों को साकार करने की दिशा में एक बड़ा कदम साबित होगा।’

आप नेता मनीष सिसोदिया ने लिखा, ‘डॉ. अंबेडकर सम्मान स्कॉलरशिप: यह सिर्फ एक योजना नहीं, बल्कि सामाजिक न्याय की नींव रखने वाला ऐतिहासिक कदम है। अरविंद केजरीवाल जी की इस क्रांतिकारी पहल से गरीब, दलित और पिछड़े वर्ग के बच्चों के सपने अब हकीकत बनेंगे। यह योजना उन्हें बड़ी यूनिवर्सिटी और विदेशों में पढ़ने का अवसर देगी, ताकि वे बाबा साहब के पदचिह्नों पर चलकर समाज के उत्थान का हिस्सा बन सकें। यह उन वंचितों को शक्ति और सम्मान देने की लड़ाई है, जिनके अधिकारों को दशकों तक दबाया गया। आइए, मिलकर इस बदलाव का हिस्सा बनें और हर बच्चे के भविष्य को उजाला दें। जय भीम।’

फैक्ट चेक

पड़ताल में हमें 4 अगस्त 2019 को प्रकाशित नवभारत टाइम्स की एक रिपोर्ट मिली। जिससे मालूम हुआ कि केजरीवाल ने साल 2019 में दलितों छात्रों को विदेश में पढ़ाई के लिए वित्तीय सहायता देने के लिए ऐसी ही एक योजना शुरू की थी। इस योजना के तहत हर साल 100 दलित छात्रों को विदेश में पढ़ाई के लिए आर्थिक मदद उपलब्ध करवाने का था।

वामपंथी मीडिया संस्थान न्यूज़लॉन्ड्री द्वारा दायर की गई एक आरटीआई के मुताबिक इस योजना के चार सालों में केवल आठ छात्रों ने इसके लिए आवेदन दिया और मात्र चार लोगों का ही आवेदन मंजूर हुआ। आरटीआई के तहत मिली जानकारी के मुताबिक पहले साल (वित्त वर्ष 2019-20 ) में सिर्फ एक छात्र ने अप्लाई किया और उन्हें दो सालों तक पांच-पांच लाख की आर्थिक मदद मिली। वित्त वर्ष 2020-21 में सरकार को तीन आवदेन प्राप्त हुए। छंटनी के बाद दो छात्रों को पांच-पांच लाख रुपए की आर्थिक मदद मिली। अगले साल (वित्त वर्ष 2021-22)  सिर्फ एक आवदेन आया। हालांकि वो खारिज हो गया। बीते साल जिन दो लोगों को इसके तहत लाभ मिला था, उसमें से एक को इस साल नहीं मिला। ऐसे में केवल एक छात्र को पांच लाख की मदद मिली। वहीं 2022-23 तीन आवेदन आए। छंटनी के बाद सिर्फ एक छात्र को लाभ मिला इस तरह देखें तो कुल मिलाकर आठ छात्रों ने इसके लिए आवदेन किया। जिनमें से चार को ही इस योजना के तहत लाभ मिल पाया।इन आठ छात्रों को सरकार ने 30 लाख रुपए की आर्थिक मदद की है।

आरटीआई से पता चला कि दिल्ली सरकार ने इसका बजट कम कर दिया है। दिल्ली सरकार के एससी एसटी/ओबीसी कल्याण विभाग के मुताबिक, योजना के शुरुआती वर्ष यानी 2019-20 में इसके लिए एक करोड़ का बजट आवंटित हुआ। अगले साल यह 50 लाख हुआ। वहीं 2021-22 में यह राशि बढ़कर एक करोड़ 20 लाख हो गई लेकिन साल 2022-23 में यह घटकर 25 लाख पर पहुंच गया।

रिपोर्ट के मुताबिक इस योजना के तहत दिल्ली सरकार 5 लाख रुपये सालाना की आर्थिक सहायता देती है। जब इस योजना की शुरुआत हुई तो पहले से ही एक ऐसी योजना चल रही थी। केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय के तहत संचालित ‘राष्ट्रीय प्रवासी छात्रवृत्ति’ के तहत छात्रों को हर साल 15,400 अमेरिकी डॉलर या लगभग 10 लाख रुपये दिए जाते हैं। जबकि यहां छात्रों को मात्र 5 लाख रुपये मिल रहे थे।

वहीं अगस्त 2023 में पार्लियामेंट्री कमेटी ने दिल्ली सरकार को सुझाव दिया था कि पांच लाख की राशि को बढ़ाकर 20 लाख कर दिया जाए। साथ ही यह भी कहा गया था कि योजना के तहत मिलने वाली राशि की अवधि को भी बढ़ाकर पांच सालों तक कर दिया जाए। अभी सरकार इस योजना के तहत मास्टर्स में दो साल और पीएचडी के लिए चार साल तक ही आर्थिक सहायता उपलब्ध करवाती है।दिल्ली सरकार ने इस योजना का जोर-शोर से विज्ञापन किया। हर साल बजट भी जारी हुआ लेकिन छात्रों ने इसके लिए आवेदन नहीं दिया।

तत्कालीन सामाजिक कल्याण मंत्री राजेंद्र पाल गौतम इस योजना को लेकर न्यूज़लॉन्ड्री से बात करते हुए कहते हैं, ‘इसमें मेरी भी गलती है। मैंने अधिकारियों पर भरोसा कर ये योजना बनवाई थी। उन्होंने विदेशों में पढ़ाई के लिए कितनी फीस लगती है. उसको लेकर कोई तहकीकात नहीं की। इतने पैसों (पांच लाख सालाना) में कोई विदेश पढ़ने जा ही नहीं सकता है। पिछले दो-तीन सालों में तो विदेशों में पढ़ाई की फीस ज़्यादा ही बढ़ गई है। इस योजना को लाने के पीछे मेरा मकसद था कि कम से कम छात्रों की फीस इससे निकल जाए।’ वे आगे कहते हैं, ‘योजना आने के बाद मैंने देखा कि छात्र इसके लिए आवेदन नहीं कर रहे हैं। कारण पता लगाया तो मालूम हुआ कि इसमें मिलने वाले पैसे बेहद कम हैं।  मैंने सरकार से कहा कि इसकी राशि बढ़ाकर कम से कम उतनी की जाए कि छात्रों की फीस पूरी हो जाए। सरकार कह भी रही थी कि करेंगे लेकिन ऐसा आज तक नहीं हुआ।’

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