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गुड़ी पड़वा संभा जी महाराज की हत्या की खुशी में नहीं मनाया जाता, बहुजन साहित्य यूट्यूब चैनल का दावा फर्जी

आज भारत में सवर्णों को खासकर ब्राह्मणों को बदनाम करने का फैशन चल रहा है। राजनेता से लेकर प्रोफेसर तक इतिहास के पन्नों के पीछे छुप कर ब्राह्मणों जाति पर आरोप लगाने से पीछे नहीं चूकते। अफसोस की बात यह है कि यह प्रचलन खत्म नहीं हो रहा है। वर्तमान समय में यूट्यूब पर वीडियो बनाकर अथवा सोशल मीडिया पर कहानी गढ़कर ब्राह्मणों के प्रति भ्रातियां फैलाई जा रही है। इसी क्रम में यूट्यूब चैनल बहुजन साहित्य ने अपने एक वीडियो में गुड़ी पड़वा त्योहार के बारे में जानकारी साझा किया जिसमें दावा किया कि गुड़ी पड़वा त्योहार संभाजी महाराज की मौत के उपलक्ष में मनाया जाता है। 

बहुजन साहित्य ने अपने वीडियो में दावा किया कि, “गुड़ी पड़वा का अर्थ होता है किला को गिराकर उसपर कब्जा करना। वीडियो में आगे कहा गया है कि, ब्राह्मणों ने संभाजी महाराज की नाक, कान की चमड़ी को उधड़ते हुए हत्या कर दी थी और उसके बाद ब्राह्मणों ने उनके सिर को भाले में लगाकर अपने गांव में जुलूस निकला साथ ही यह संदेश दिया कि जो स्वराज्य की मांग करेगा उसका यही हाल होगा।”

वीडियो में आगे कहा गया है कि, “तब से अब तक महराष्ट्र व अन्य राज्यों में भी गुड़ी पड़वा मनाया जाता है। इसे ब्राह्मण ही नहीं, अब बहुजन समाज भी अपने राजा के मरने पर मनाने लगा है।”

इस यूटयूब वीडियो ने दर्शकों के मन में कई प्रकार के सवाल खड़े कर दिए हैं। जैसे कि गुड़ी पड़वा का त्योहार जो समूचे महाराष्ट्र में धूमधाम से मनाया जाता है उसका इतिहास इतना काला है? क्या मराठा साम्राज्य के राजा संभाजी महाराज की हत्या ब्राह्मणों ने की थी?

यह ऐसे सवाल है जो दर्शकों को गूगल सर्च और इतिहास के किताबों की ओर रुख कर देने पर मजबूर कर देंगे। खैर, हम अपने पाठकों के लिए बहुजन साहित्य के वीडियो का फैक्ट चेक करने का प्रक्रिया को आगे बढ़ाते हैं।

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फैक्ट चेक

फैक्ट चेक के प्रक्रिया को आगे बढ़ाने से पहले हम यह बता दें कि बहुजन साहित्य द्वारा शेयर किया गया वीडियो में किए गए दावों के पीछे स्रोत है – लकीर का फकीर नामक एक किताब। इस 41 पन्ने की किताब को राजीव पटेल और संजय कुमार सिंह ने लिखा है।

यह किताब में भारत में होने वाला त्योहार अथवा बाकी धार्मिक विश्वासों का आलोचना किया गया है। लेखक ने पंद्रह त्याहोरों के बारे में जिक्र किया है और उनको जाति व्यवस्था के कारण बहुजनों के ऊपर थोपने का आरोप लगाया है। 

कुलमिलाकर यह किताब वामपंथी विचारधारा से ग्रसित है। लेखक अंग्रेज़ो और मुगलों के तलवे चाटते हुए भारतीय सभ्यता का उपहास कर रहें है। हिंदू देवी देवताओं के प्रति विश्वास के ऊपर व्यंग्यपूर्ण तर्क दे रहें है।

Source- Lakeer ka Fakeer, Book

खैर, हम अपने फैक्ट चेक के प्रक्रिया को प्रारंभ करते है। इस रिपोर्ट में हम मुख्य रूप से दो मुख्य बिंदुओं पर बात करेंगे। पहला- गुड़ी पड़वा का त्योहार क्यों मनाया जाता है। त्योहार और संभाजी महाराज की मौत से क्या लेना देना है?  दूसरा यह कि संभाजी महाराज की मौत के पीछे क्या कारण था?

गुड़ी पड़वा त्योहार क्यों मनाया जाता है?

इंडिया डॉट कॉम के मुताबिक, हिंदू नववर्ष की शुरुआत चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से होती है और इस दिन गुड़ी पड़वा का पर्व मनाया जाता है। इसी दिन से चैत्र नवरात्रि की भी शुरुआत होती है। बता दें कि गुड़ी पड़वा का पर्व आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक और महाराष्ट्र में बड़ी धूमधाम के साथ मनाया जाता है। गुड़ी का अर्थ विजय पताका होता है और इस दिन पताका यानि ध्वज लगाया जाता है और मान्यता है कि इससे सुख-समृद्धि का आगमन होता है।

Source- India Times

दैनिक जागरण ने गुड़ी पड़वा पौराणिक कथा पर प्रकाश डालते हुए लिखा है कि, “पौराणिक कथा के अनुसार त्रेतायुग में बाली नामक राजा किष्किन्धा पर शासन करता था। जब भगवान श्री राम लंकापति रावण की कैद से माता सीता को मुक्त कराने जा रहे थे, तब उनकी मुलाकात बाली के सगे भाई सुग्रीव से हुई। सुग्रीव ने श्री राम को अपने भाई के आतंक और कुशासन के विषय में बताया और अपना राज्य वापस मिलने पर उनकी सहायता करने का वचन दिया। तब श्री राम ने बाली का वध कर, उसके आतंक से सुग्रीव और समस्त प्रजा को मुक्त कराया। उस दिन चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि थी। यही कारण है कि इस दिन विशेष रूप से दक्षिण भारत में घरों में विजय पताका फहराया जाता है और गुड़ी पड़वा पर्व को हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है।”

Source- Dainik Jagran

दैनिक जागरण ने  विशेष रूप से महाराष्ट्र में गुड़ी पड़वा मनाए जाने के कारण पर भी रोशनी डालते हुए लिखा है, “महाराष्ट्र में गुड़ी पड़वा पर्व से जुड़ी एक कथा यह भी प्रचलित है की प्रतिपदा तिथि के दिन ही छत्रपति शिवाजी महाराज ने विदेशी घुसपैठियों को पराजित किया था और शिवाजी महाराज की सेना ने विजय ध्वज फहराया था। तभी से इस दिन को विजय पर्व के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है।”

Source- Dainik Jagran

दैनिक जागरण के आलावा टीवी9, नवभारत टाईम्स के साथ ही अन्य कई मुख्यधारा मीडिया ने इस बात की पुष्टि की है कि गुड़ी पड़वा प्रभु श्री राम के लंका के राजा रावण पर विजय प्राप्त होने की खुशी में मनाया जाता है तथा तिथि अनुसार गुड़ी पड़वा के दिन ही छत्रपति शिवाजी महाराज ने मुगलों को रण भूमि पर धूल चटाया था।

हमें अपनी पड़ताल के दौरान इंडियापोस्टस नामक एक ब्लॉग मिला, जिसमें बहुजन साहित्य द्वारा किए गए भ्रामक दावों का खंडन किया गया है।

ब्लॉग में दावा किया गया है कि संभा जी महराज की मौत से पहले भी गुड़ी पड़वा का त्योहार मनाया जाता था। छत्रपति शिवाजी महाराज के समय के दौरान के पत्र में भी गुड़ी पड़वा का जिक्र किया गया है। यह चिट्ठी 24 नवंबर 1649 को लिखी गई थी।

ब्लॉग में इतिहासकार वीके रजवाड़े का चर्चा है। वीके रजवाड़े की किताब मराठा हिस्ट्री टूल्स में भी गुड़ी पड़वा त्योहार का कई जगहों पर उल्लेख किया गया है। नीरज जी पंडित जो कि शिवाजी महाराज के अस्टप्रधान मंडल के हिस्सा थे वो भी गुड़ी पड़वा के शुभ अवसर पर शिवाजी महाराज के घर गए थे।

ब्लॉग में संत दयानेश्वर के लेखन के बारे में जानकारी दिया गया है। अपने लेखन में संत दयानेश्वर में कई जगहों पर गुड़ी पड़वा का उल्लेख किया है। इसके अलवा संत एकनाथ महराज, संत तुकाराम ने अपने लेखन गुड़ी पड़वा पर प्रकाश डाला है।

Source- India Posts

तमाम प्रमाण जैसे कि मुख्यधारा मीडिया की रिपोर्ट (दैनिक जागरण, नवभारत, आदि)  अथवा इंडिया पोस्ट ब्लॉग से मिली जानकारी से कहना उचित होगा कि गुड़ी पड़वा का त्योहार महाराष्ट्र में छत्रपति शिवाजी महाराज के समय से मनाया जाता है। छत्रपति शिवाजी जी की मौत साल 1680 में हुई और शिवाजी महाराज के उत्तराधिकारी बने संभाजी महाराज की मौत साल 1689 में हुई थी। छत्रपति संभाजी महाराज साल 1681-1689 तक राज किया था। गौर करने वाली यह भी है कि, किसी भी मुख्यधारा सत्यापित प्रकाशित लेख में बहुजन साहित्य और लकीर का फकीर किताब वाले दावे की पुष्टि नहीं की है।

इसका अर्थ यह है कि बहुजन साहित्य का यूट्यूब वीडियो और लकीर का फकीर किताब दोनों ही फर्जी है और भ्रामक है।

अब हम फैक्ट चेक की प्रक्रिया को दूसरे बिंदु की तरफ आकर्षित करते हैं। क्या छत्रपति संभाजी महाराज की मौत के पीछे ब्राह्मण जाति का हाथ है? 

इस बात की पड़ताल हमने गूगल सर्च से शुरू किया। विकिपीडिया के अनुसार, छत्रपति संभाजी महाराज के युद्धकला से मुगलसाशक औरंगजेब बहुत परेशान हो गया था। संभाजी महाराज अपने जीवन काल में 210  युद्ध किए और सभी युद्ध का अंत रण भूमि पर भगवा ध्वज फहरा कर हुआ। लेकिन साल 1689 में औरंगजेब ने बड़ी क्रूरता के साथ संभाजी महाराज को मार डाला।

Source- Wikipedia

नवभारत टाईम्स ने संभाजी महाराज की मृत्यु के बारे में विस्तृत रूप से जानकारी दिया है। नवभारत टाईम्स के अनुसार, “औरंगजेब ने शर्त रखी थी कि संभाजी राजे धर्म परिवर्तन कर लें तो उनकी जान बख्श दी जाएगी। हालांकि संभाजी राजे ने ये शर्त मानने से साफ इनकार कर दिया। 40 दिन तक औरंगजेब के अंतहीन अत्याचारों के बाद 11 मार्च 1689 को फाल्गुन अमावस्या के दिन संभाजी महाराज की मृत्यु हो गई। असहनीय यातना सहते हुए भी संभाजी राजे ने स्वराज और धर्म के प्रति अपनी निष्ठा नहीं छोड़ी। इसलिए अखंड भारतवर्ष ने उन्हें धर्मवीर की उपाधि से विभूषित किया।”

Source- Navbharat Times

रिपोर्ट में आगे लिखा है कि, “संभाजी महाराज को मौत से पहले भीषण शारीरिक यातनाएं दी गई थीं। महीने भर तक उनको तड़पाया गया। बताया जाता है कि सबसे पहले उनके हाथों को झुनझुने से बांधकर ऊंटों में बांधा गया। तुलापुर में संभाजी महाराज और कवि कलश का जुलूस निकलवाया गया। हर यातना के साथ उन्हें इस्लाम कबूल करने के लिए कहा जाता था। औरंगजेब के कहने पर उनकी आंखों में गरम लोहे की छड़ें डाल दी गई थीं। दोनों हाथ काट दिए गए और यहां तक कि चमड़ी भी उधेड़ दी गई। हाथ काटने के दो हफ्तों बाद उनका सर कलम कर दिया गया लेकिन संभाजी झुके नहीं। 11 मार्च 1689 को हिंदू धर्म और स्वाभिमान की रक्षा के लिए उन्होंने प्राणों की आहुति दे दी।”

Source- Navbharat Times

विकिपीडिया और नवभारत टाईम्स की रिपोर्ट से यह साफ होता है कि छत्रपति संभाजी महाराज की मौत का जिम्मेदार औरंगजेब है ना कि ब्राह्मण। संभाजी महाराज को धर्मवीर इसलिए कहा जाता है कि उनसे बड़ा हिंदू धर्म के लिए बलिदान किसी ने नहीं दिया। औरंगजेब ने जब क्रूरता और निर्दयता का पराकाष्ठा को लांघ दिया तब भी संभाजी महाराज की चेतना में हिंदुत्व की ही चिंगारी जल रही थी।

छत्रपति संभाजी महाराज द्वारा दिए गए हिंदू धर्म और सनातन संस्कृति के लिए आहूति वामपंथियों की नींद हराम कर रखी है इसी वजह से आज वे उनके बारे में भ्रामक प्रचार कर रहें है। अतः गुड़ी पड़वा को संभाजी महाराज की मौत से कोई लेना देना नहीं है और संभाजी महाराज को ब्राह्मणों ने नहीं बल्कि अमानवीय मुगल शासक औरंगजेब के हाथों को वीरगति को प्राप्त हुए थे।

छत्रपति संभाजी महाराज के बारे दुष्प्रचार एवं भ्रातियां फैलाना उनके वीरगति का अपमान है। इसकी जितनी भी निंदा की जाए वो कम है। 

दावायूट्यूब चैनल बहुजन साहित्य ने दावा किया कि छत्रपति संभाजी महाराज की मौत का जश्न मानती है गुड़ी पड़वा का त्योहार।
दावेदारयूट्यूब चैनल बहुजन साहित्य और लकीर का फकीर किताब
फैक्ट चैकफर्जी
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Tags: Communist फैक्ट चैक

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