यूट्यूबर ध्रुव राठी ने 1 अप्रैल को अपने यूट्यूब चैनल पर ‘डरा हुआ डिक्टेटर‘ नामक एक वीडियो साझा किया। इस वीडियो में उन्होंने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल गिरफ्तारी से लेकर कांग्रेस पार्टी को आयकर नोटिस जैसे अलग अलग मामलों को जोड़ते हुए बताया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार में देश तानाशाही की ओर जा रहा है। अपने इस लेख में हम ध्रुव राठी के दावों का विश्लेषण कर रहे हैं।
दावा 1: आजाद भारत में पहली बार एक मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल को गिरफ्तार किया गया वो भी तब जब कोर्ट में कोई गुनाह साबित नही हुआ। ध्रुव राठी ने मनीष सिसोदिया के सम्बन्ध में कहा कि वो शिक्षामंत्री हैं और एक साल से जेल में हैं, सबसे हैरानी की बात है कि उनका गुनाह कोर्ट में साबित नहीं हुआ है।
ध्रुव ने कहा कि जब सबूत ही नहीं है तो कोर्ट इन्हें जमानत क्यों नहीं दे रहा? इसका कारण PMLA कानून है। सबसे पहले हम सबूत के दावों पर बात करते हैं। असल में मनीष सिसोदिया को साल 26 फरवरी 2023 को सीबीआई ने गिरफ्तार किया गया था। इसके बाद 9 मार्च को ईडी ने उन्हें अपनी गिरफ्त में लिया था। दोनों एजेंसियों की ओर से कई बार रिमांड पर पूछताछ के बाद उन्हें न्यायिक हिरासत में तिहाड़ जेल भेज दिया गया था। ध्रुव राठी यह बताना भूल गए है कि मनीष सिसोदिया दिल्ली सरकार में आबकारी मंत्री भी थे। मनीष सिसोदिया ने 17 नवंबर 2021 को राज्य में नई शराब नीति लागू की थी। हालांकि, नई शराब नीति को बाद में इसे बनाने और इसके कार्यान्वयन में अनियमितताओं के आरोपों के बीच रद्द कर दिया गया था। सीबीआई ने अगस्त 2022 में इस मामले में 15 आरोपियों के खिलाफ नियमों के कथित उल्लंघन और नई शराब नीति में प्रक्रियागत गड़बड़ी के आरोप में एफआईआर दर्ज की। बाद में सीबीआई द्वारा दर्ज मामले के संबंध में ईडी ने पीएमएलए के तहत मनी लॉन्ड्रिंग के एक मामले की जांच शुरू कर दी।
वहीं अपनी गिरफ्तारी के बाद मनीष सिसोदिया ने जमानत के लिए कई याचिकाएं कोर्ट में दाखिल की हैं। इस दौरान कोर्ट ने क्या कहा, पाठकों को इसे ध्यान से पढना चाहिए। अप्रैल 2023 में दिल्ली की एक अदालत ने मनीष सिसोदिया की जमानत याचिका खारिज करते हुए कहा, ‘सिसोदिया ही दिल्ली शराब घोटाले के मास्टर माइंड हैं। उन्हें रिश्वत के तौर पर 90 से 100 करोड़ रुपये मिलने थे। अपने 34 पेज के आदेश में स्पेशल जज एमके नागपाल ने कहा कि आपराधिक षडयंत्र में सिसोदिया ही एक्टिव रोल अदा किया। स्पेशल कोर्ट का यहां तक कहना था कि सारे सबूत आम आदमी पार्टी के नेता के खिलाफ हैं। वो साफ तौर पर इशारा कर रहे हैं कि सिसोदिया करप्शन में पूरी तरह से शामिल थे। स्पेशल जज एमके नागपाल ने कहा कि सिसोदिया को अरेस्ट करके सीबीआई ने कोई गुनाह नहीं किया है। न तो सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट के किसी आदेश की अवहेलना की है और न ही हाईकोर्ट की। सीबीआई ने सिसोदिया को तभी गिरफ्तार किया जब एजेंसी को लगा कि ये बेहद जरूरी था।
उच्च न्यायालय ने 30 मई को सीबीआई मामले में उन्हें जमानत देने से इनकार करते हुए कहा था कि उपमुख्यमंत्री और आबकारी मंत्री के पद पर रहने के नाते, वह एक ‘प्रभावशाली’ व्यक्ति हैं तथा वह गवाहों को प्रभावित कर सकते हैं। इसके बाद उच्च न्यायालय ने धनशोधन मामले में तीन जुलाई को उन्हें जमानत देने से इनकार करते हुए कहा था कि उनके खिलाफ आरोप ‘बहुत गंभीर प्रकृति’ के हैं। इसके बाद अक्टूबर 2023 में सुप्रीम कोर्ट ने मनीष सिसोदिया की जमानत अर्जी खारिज करते हुए कहा, ‘हमने कहा था कि कुछ पहलू अब तक संदेहास्पद हैं लेकिन 338 करोड़ रुपये ट्रांसफर होने का पहलू लगभग साबित हो रहा है। लिहाज़ा ज़मानत अर्जी खरिज की जा रही है।’
यूट्यूबर ध्रुव ने मनीष सिसोदिया की तरह सत्येन्द्र जैन के सम्बन्ध में भी कहा कि वो दो साल से जेल में हैं, उनका गुनाह साबित नहीं हुआ है। सबसे पहली बात यह मामला शराब घोटाले का नहीं हैं। ED ने सत्येंद्र जैन को मनी लॉन्ड्रिंग के मामले को लेकर 30 मई 2022 को गिरफ्तार किया था। इसके बाद उन्हें 10 महीने की मेडिकल बेल दी गयी थी, सत्येन्द्र जैन 26 मई 2023 से मेडिकल बेल पर थे। हाल ही में कोर्ट के आदेश पर उन्होंने 18 मार्च 2024 को तिहाड़ जेल में सरेंडर कर दिया। इस तरह सत्येंद जैन के दो साल से जेल में होने का दावा झूठा है।
सत्येंद जैन के मामले में सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा कि ईडी द्वारा इकट्ठा किए गए पर्याप्त सबूत दर्शाते हैं कि दो सहयोगी के साथ वह कथित अपराध के लिए पहली नजर में दोषी हैं। पीठ ने कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि आवेदक (सत्येन्द्र जैन) ने कैश के बदले आवास प्रविष्टियों के विचार की कल्पना की थी और कोलकाता स्थित एंट्री ऑपरेटरों के माध्यम से चार कंपनियों के बैंक खाते में कुल 4.81 करोड़ रुपये प्राप्त किए। आगे कहा कि आप नेता के सहयोगी अंकुश जैन और वैभव जैन ने इनकम डिस्कोजर स्कीम (आईडीएस) के तहत झूठी घोषणाएं करके उनकी सहायता की थी। शीर्ष अदालत ने कहा कि मामले के तथ्यों और परिस्थितियों की समग्रता को ध्यान में रखते हुए हमारी राय है कि अपीलकर्ता हमें संतुष्ट करने में बुरी तरह फेल रहे हैं, जिससे माना जाए कि वे कथित अपराधों के लिए दोषी नहीं हैं।
हम पाठकों को कुछ उदाहरण से समझाने की कोशिश करते हैं, बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू यादव को चारा घोटाले के पांच मामलों में सजा हो चुकी है। साल 1996 में घोटाले के पर्दाफाश के बाद तत्कालीन बिहार के डोरंडा थाना में 17 फ़रवरी को इसकी एफ़आइआर (नंबर 60/96) दर्ज करायी गयी थी। इस घोटाले के कारण 25 जुलाई 1997 को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफ़ा देना पड़ा, उसी साल 30 जुलाई को उन्होंने पटना में सरेंडर किया और वे इस घोटाले में पहली बार जेल गए। लालू यादव को पहली सजा 3 अक्टूबर 2013 को सुनाई गयी और आखिरी पांचवी सजा 21 फ़रवरी 2022 को सुनाई गयी। इस हिसाब से करप्शन के इस मामले में लालू यादव को पांच सजा सजा सुनाने करीबन 26 साल लग गए।
इन 26 वर्षों में केंद्र में एचडी देवे गौड़ा, इंद्र कुमार गुजराल, अटल बिहारी वाजपेयी, नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री थे। जब लालू यादव को गिरफ्तार किया गया तब केंद्र में जनता दल पार्टी से इंद्र कुमार गुजराल पीएम थे वहीं जब लालू को पहली सजा हुई कांग्रेस पार्टी की सरकार थी और मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री थे। तो क्या यहाँ यह माना जाए कि केंद्र की सरकार विपक्षी दल के राजनेता को खत्म करना चाहती थी? तो क्या यहाँ यह कहा जा सकता है कि दोषी साबित हुए बिना ही लालू को जेल में डाल दिया गया?
- आईएनएलडी प्रमुख और हरियाणा के चार बार के सीएम ओम प्रकाश चौटाला को मई 2022 में दिल्ली की राउज एवेन्यू कोर्ट ने आय से अधिक संपत्ति मामले में दोषी करार दिया। सीबीआई ने यह केस 2005 में दर्ज किया था। इससे पहले 22 जनवरी 2013 को शिक्षकों की अवैध भर्ती के मामले में ओमप्रकाश चौटाला, उनके बेटे और 53 अन्य को दोषी ठहराया। आरोप है कि 1999-2000 के दौरान हरियाणा में 3,032 लोगों को अध्यापक के तौर पर भर्ती किया गया था। साल 2004 में इस मामले की जाँच शुरू हुई थी। इन दोनों ही मामले में जांच प्रक्रिया पूरी होने में 10 वर्ष से ज्यादा लग गए, जाँच के दौरान आरोपियों को जेल भी जाना पड़ा। दोनों ही मामलों की जब जांच शुरू हुई तब केंद्र में मनमोहन सिंह की सरकार थी। तो क्या यहाँ भी कहा जा सकता है कि कांग्रेस की सरकार विपक्षी दलों को खत्म कर रही थी? देश में तानाशाही कर रही थी?
- कांग्रेस नेता काजी रशीद मसूद को 22 साल पुराने एमबीबीएस सीट घोटाला मामले में सितंबर 2013 में सजा सुनाई गयी थी। घोटाले के समय रशीद मसूद केंद्र सरकार में स्वास्थ्य राज्य मंत्री थे।
- बीजेपी के पूर्व अध्यक्ष बंगारू लक्ष्मण को करप्शन के एक मामले में 11 वर्षों में सजा हुई थी।
- कांग्रेस नेता और पूर्व दूरसंचार राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) सुख राम को टेलीकॉम घोटाले में नवम्बर 2011 में 15 साल बाद दोषी करार दिया गया था। उन्होंने 1996 में घोटाला किया था।
यह बस कुछ उदाहरण हैं, जो यह बताने के लिए पर्याप्त हैं कि भ्रष्टाचार के पुराने मामलों में जाँच प्रक्रिया में 10 वर्ष से ज्यादा का समय लगा है। तो ध्रुव राठी मात्र 2 वर्षों की जांच प्रक्रिया से बैचेन क्यों हैं?
ध्रुव राठी कहता है कि आजाद भारत में पहली बार एक मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल को गिरफ्तार किया गया है। इसमें हैरानी की बात क्या है, क्या मुख्यमंत्री होने मात्र से किसी अपराध की छूट मिलती है? भारतीय संविधान के अनुच्छेद 361 के तहत केवल देश के राष्ट्रपति और राज्यों के राज्यपालों को उनके कार्यकाल के दौरान गिरफ्तार नहीं किया जा सकता है। भारत के प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री को उनके कार्यकाल के दौरान गिरफ्तारी से छूट का कोई प्रावधान नहीं है।
ध्रुव राठी ने अपने वीडियो में कहा कि शराब घोटाले पर अरविन्द केजरीवाल की गिरफ्तारी पर राहुल गाँधी ने भी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने नरेंद्र मोदी को तानाशाह बताया लेकिन खास बात है कि कांग्रेस पार्टी ने भी शराब नीति पर सवाल उठाए थे। कांग्रेस पार्टी ने दिल्ली में शराब घोटाले का आरोप लगाकर दिल्ली पुलिस कमिश्नर से लिखित शिकायत की थी।
दिल्ली शराब घोटाले में बहुत बड़ी ख़बर
— News18 India (@News18India) March 22, 2024
कांग्रेस ने की थी केजरीवाल के ख़िलाफ़ शिकायत
दिल्ली पुलिस को कार्रवाई के लिए लिखी थी चिट्ठी
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दिल्ली कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष अजय माकन ने करीबन एक साल पहले अरविन्द केजरीवाल सरकार पर प्रेस कांफ्रेस पर शराब नीति में घोटाले के आरोप लगाए थे। अजय माकन ने प्रेस कांफ्रेस कर कहा था कि कहा था कि शराब घोटाला मामले में अब यह सीधे-सीधे स्टैब्लिश हो गया है कि इसमें कम से कम 100 करोड़ की रिश्वत ली गई। केजरीवाल की बिजनेसमैन से बात कराई गई, बिजनेसमैन से बात कराने के बाद होलसेल डीलर्स के लिए कमीशन 5 पर्सेंट से बढ़ाकर 12 पर्सेंट कर दिया गया। उसमें शर्त यह रखी गई की 6 पर्सेंट वापस आम आदमी पार्टी और केजरीवाल को दिया जाए। उन्होंने बताया कि इस संबंध में मनी ट्रेल भी स्टैब्लिश हो गया है कि वही पैसा आम आदमी पार्टी ने गोवा के चुनाव में इस्तेमाल किया और कांग्रेस के खिलाफ किया।
वहीं साल 2022 में अजय माकन ने आरोप लगाया कि केजरीवाल उपमुख्यमंत्री पद से सिसोदिया को इसलिए नहीं हटा रहे हैं, क्योंकि मामले के तार उनसे जुड़ जाएंगे। माकन ने आबकारी नीति पर केजरीवाल को बहस की चुनौती भी दी। माकन ने कहा, ‘अगर सिसोदिया इस्तीफा नहीं देते हैं तो उन्हें हटा देना चाहिए। केजरीवाल जी उन्हें नहीं हटा रहे, क्योंकि ऐसा करने बाद इस मामले के तार उनसे जुड़ जाएंगे।’ कांग्रेस के राज्यसभा सदस्य अजय माकन हों या पार्टी प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत, पूर्व सांसद संदीप दीक्षित हों या महिला कांग्रेस अध्यक्ष अलका लांबा, कुछ महीने पहले तक यह सभी केजरीवाल और AAP को शराब घोटाले के लिए खरी-खोटी सुना रहे थे।
अरविन्द केजरीवाल की गिरफ्तारी पर राहुल गाँधी का बयान सुनाकर ध्रुव राठी क्या साबित करना चाहते हैं? आखिर यह बात किससे छुपी है कि दिल्ली में बीते दो लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने पाँचों सीटों पर जीत दर्ज की है लेकिन इस बार कांग्रेस और आम आदमी पार्टी ने गठबंधन किया है। इस वजह से अरविन्द केजरीवाल की गिरफ्तारी को कांग्रेस गलत बता रही है। ऐसे में राहुल गाँधी के तानाशाह के आरोपों में कितनी सच्चाई रह जाती है?
पाठकगण अब ध्यान दें, साल 2016 में अरविन्द केजरीवाल ने अगस्ता वेस्टलैंड के मामले में कांग्रेस पार्टी की शीर्ष नेता सोनिया गिरफ्तारी की मांग की थी। अरविन्द केजरीवाल ने जन्तर मंतर से कहा कि नरेंद्र मोदी भ्रष्टाचार के मामले में जांच नहीं करती है। नरेंद्र मोदी सारे कांग्रेसियों को बचा रहे हैं, एक साल के लिए हमे एंटी करप्शन ब्रांच दे दो, हम बताएंगे जांच कैसी होती है। अरविन्द केजरीवाल ने कहा कि प्रधानमंत्री जी आपको हमने एक्शन लेने के लिए प्रधानमंत्री बनाया था। इतना क्यों डर रहे हैं सोनिया गाँधी से प्रधानमंत्री मोदी? अरविन्द केजरीवाल ने कहा कि आप पहले ही बता देते कि आप कांग्रेस वालों के साथ मिले हुए हैं तो आपको प्रधानमंत्री नहीं बनाते। बंद कर दो CBI, बंद कर दो ED, बंद कर दो सारी जाँच एजेंसी। अगर जांच करवानी है तो सोनिया गाँधी को गिरफ्तार करो, दो दिन में सामने आ जाएगा कि सच किया है।
ध्रुव राठी से यह पूछा जाना चाहिए कि जब अरविन्द केजरीवाल सोनिया गाँधी की गिरफ्तारी की मांग कर रहे थे तो वो देश में तानाशाही चाहते थे, विपक्ष को खत्म कर रहे थे? जब अरविन्द केजरीवाल किसी भ्रष्टाचार के मामले में जांच की मांग कर सकते हैं, गिरफ्तारी के लिए आवाज उठा सकते हैं तो आज जब उन पर आरोप हैं तो जांच से क्या तकलीफ है?
दावा 2: मोदी सरकार ने PMLA में संशोधन कर जमानत मिलना मुश्किल हो गया, इससे ED को ताकत मिल गई।
मोदी सरकार ने वास्तव में सेक्शन 45 को लागू नहीं किया है। सेक्शन 45 को 2008-09 में कांग्रेस सरकार के दौरान लागू किया गया था। इसमें जमानत प्राप्त करने के नियमों में कुछ छूट थी, लेकिन फिर साल 2012 में कांग्रेस सरकार ने संशोधन किया और सेक्शन 45 को अत्यधिक कठोर किया। फिर साल 2016-17 में सुप्रीम कोर्ट ने सेक्शन 45 को खारिज कर दिया, लेकिन 2018 में मोदी सरकार ने पार्लियामेंट से फिर से सेक्शन 45 को पास किया। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने सेक्शन 45 का समर्थन किया। अतः PMLA के तहत जमानत प्राप्त करने के नियम को सबसे पहले कांग्रेस सरकार ने कठोर किया था। मोदी सरकार ने सिर्फ 2018 में सेक्शन 45 को पुनः लागू किया है, और इसे संशोधित किया गया है।
Section 45 के तहत जमानत के मामले में ”twin conditions” दो विशेष शर्तों को समाप्त करने की आवश्यकता है। पहली शर्त यह है कि अभियुक्त को यह सिद्ध करना होगा कि वह उस अपराध का दोषी नहीं है जिसका उसे आरोपित किया गया है। दूसरी शर्त यह है कि अदालत को यह संतोष दिखाना होगा कि उसे यकीनी कारण है कि अभियुक्त जमानत पर होने के बाद किसी अपराध को नहीं करेगा।
दावा 3: दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के गिरफ्तारी को अंतरराष्ट्रीय स्तर बात हुई। जर्मनी, अमेरिका और यूनाइटेड नेशन्स ने केजरीवाल के गिरफ्तारी के खिलाफ चिंता व्यक्त की है।
भ्रष्टाचार के मामले में किसी शख्स की गिरफ्तारी उस देश का आंतरिक मामला है। इस मामले में भारतीय विदेश मंत्रालय ने दोनों देशों के दूतों को तलब किया और उन्हें सलाह दी कि भारत के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करें। भारत ने कभी पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप पर 90 से अधिक मामलों के संदर्भ में किसी प्रकार का सवाल नहीं उठाया है साथ ही जर्मनी के चांसलर Olaf Scholz के खिलाफ टैक्स घोटाला मामले में कभी सवाल नहीं उठाया है। आखिर दूसरे देशों की दखलंदाजी से ध्रुव राठी खुश क्यों हैं?
खैर, हम आपका ध्यान एक ज़रूरी और संवदेनशील मुद्दे की ओर आकर्षित करना चाहते हैं। मीडिया संस्थान द पैंफलेट ने अपनी खोजी पत्रकारिता के तहत पता लगाया था कि अमेरिका और यूनाइटेड नेशन्स में अरविंद केजरीवाल के गिरफ्तारी और कांग्रेस पार्टी के बैंक खातों को सीज करने को लेकर सवाल पूछना वाला एक बांग्लादेशी पत्रकार मुशफ़िकुल फ़ज़ल अंसारी है। मुशफ़िकुल ने अपने ट्विटर प्रोफाइल पर लिखा है कि वह JDN के सहयोगी हैं और राइट टू फ्रीडम के कार्यकारी निदेशक हैं।जर्नलिज़्म डेवलपमेंट नेटवर्क (JDN) वह संगठन है जो OCCRP को चलाता है। यही वह OCCRP है जिसे सोरोस और फ़ोर्ड फाउंडेशन ने फंड किया है। यही OCCRP ने आदानी ग्रुप पर हमला करने की कोशिश की थी।
इसके अलावा “राइट टू फ्रीडम” वाशिंगटन में स्थित एक गैर-लाभकारी संगठन है, जो दक्षिण एशिया, विशेष रूप से बांग्लादेश के लिए एक अमेरिकी प्रोपेगेंडा फ्रंट के रूप में काम करता है। इसके अध्यक्ष विलियम बी. मिलम, जो पूर्व अमेरिकी राजदूत भी रहे हैं, और उनकी अंतिम पोस्टिंग पाकिस्तान में थी। यह संगठन वुडरो विल्सन सेंटर के साथ काम करता है, जिसे ओपन सोसाइटी फाउंडेशन और फोर्ड फाउंडेशन से फंड मिला है। इसका एक आधिकारिक पार्टनर है- National Endowment for Democracy जिसे आम तौर पर दूसरा CIA कहा जाता है, जो सरकार गिराने के ऑपरेशन के लिए जाना जाता है। मुशफ़िकुल फ़ज़ल अंसारी ऐसी संस्था से जुड़े हुए हैं जिसका काम ही है सत्ता का परिवर्तन करना। हैरानी की बात यह है कि अंसारी की तस्वीर भारत के विपक्ष के सबसे बड़े नेता राहुल गांधी के साथ है।
Now, after Germany and the United States — United Nations has commented on Arvind Kejriwal’s arrest.
— The Pamphlet (@Pamphlet_in) March 29, 2024
But do you know who propped these questions in press briefings of the US State Department and the UN?
Bangladeshi Journalist Mushfiqul Fazal Ansarey#Thread pic.twitter.com/TJ7YPcXLgC
दावा 4: राहुल गाँधी पर बहुत ही अजीबोगरीब केस कर उन्हें अयोग्य साबित करने की कोशिश की गयी।
राहुल गांधी ने कर्नाटक के कोलार में 13 अप्रैल 2019 को चुनावी रैली में कहा था, ”नीरव मोदी, ललित मोदी, नरेंद्र मोदी का सरनेम कॉमन क्यों है? सभी चोरों का सरनेम मोदी क्यों होता है?” राहुल के इस बयान को लेकर बीजेपी विधायक और पूर्व मंत्री पूर्णेश मोदी ने उनके खिलाफ धारा 499, 500 के तहत आपराधिक मानहानि का केस दर्ज कराया था. अपनी शिकायत में बीजेपी विधायक ने आरोप लगाया था कि राहुल ने 2019 में चुनावी रैली को संबोधित करते हुए पूरे मोदी समुदाय को कथित रूप से यह कहकर बदनाम किया कि सभी चोरों का सरनेम मोदी क्यों होता है?
हैरानी की बात है कि एक पूरी जाति के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी को ध्रुव राठी ‘अजीबोगरीब’ केस बता रहे हैं।
यहाँ गौर करने वाली बात यह भी है कि दोषी साबित होने के बाद सदस्यता जाने का कानून मोदी सरकार नहीं लाई थी। सुप्रीम कोर्ट ने 2013 में लिली थॉमस मामले में अपने महत्वपूर्ण निर्णय दिया था कि यदि तत्कालीन सांसद या विधायक को दोषी घोषित किया जाता है तो वे तत्काल प्रभाव से अपनी सीट खो देंगे, जिससे वह लोकसभा या विधानसभा की सीट खाली हो जाएगी। इसके बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार सुप्रीम कोर्ट के फैसले के काट के तौर पर एक अध्यादेश लेकर आई थी। अध्यादेश को मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली कैबिनेट से पास किया गया और मंजूरी के लिए राष्ट्रपति के पास भेजा गया। वहीं राहुल गाँधी ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में अध्यादेश की कॉपी फाड़ दी थी। उन्होंने अध्यादेश को पूरी तरह बकवास कहा था. बाद में इस अध्यादेश को कैबिनेट ने वापस ले लिया था। यानि जिस कानून का राहुल गाँधी खुद समर्थन करते हैं, अगर उसी कानून के तहत राहुल गाँधी की सदस्यता जाती है तो इसमें तानाशाही कैसे हो गयी?
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि राहुल गांधी को जब इस कानून के तहत सूरत कोर्ट ने उन्हें सांसद पद से बर्खास्त किया था उसके तुरंत बाद उन्होंने जमानत याचिका डाली और उन्हें जमानत मिल गई। ध्रुव राठी अरविंद केजरीवाल के ऊपर PMLA के मामले को राहुल गांधी को संसद से बर्खास्त किए जाने वाले मामले को एक ही तराजू में तौल रहें है जबकि दोनों मामला बिल्कुल अलग है।
दावा 5: सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि चुनाव आयुक्त की नियुक्ति प्रधानमंत्री, विपक्षी नेता, चीफ जस्टिस करेंगे।
ध्रुव राठी का यह दावा पूरी तरह से भ्रामक और बेबुनियाद है। सुप्रीम कोर्ट ने साल 2023 में अपने फैसले में कहा था कि जब तक संसद चुनाव आयोग के अधिकारियों को चुनने के लिए कोई कानून पारित नहीं करती तब तक चीफ जस्टिस, प्रधानमंत्री और विपक्ष के नेता मिलकर आयोग के अधिकारियों का चयन करेंगे। इसके बाद मोदी सरकार ने संसद से एक कानून पारित किया और चीफ जस्टिस की जगह सरकारी किसी मंत्री को आयोग के अधिकारियों का चयन करने का हक दिया। फिलहाल चुनाव आयोग के अधिकारियों का चयन प्रधानमंत्री, केंद्रीय मंत्री और विपक्ष के नेता मिलकर करते है।
यहां बताना आवश्यक है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले से पहले चुनाव आयोग के अधिकारियों का चयन केवल सरकार के हाथ में होता था। विपक्ष के नेता का कोई हस्तक्षेप नहीं होता था। कांग्रेस सरकार ने अपने कार्यकाल के दौरान सभी चुनाव आयोग के अधिकारियों को अपनी पसंद से चुना था।
साल 2009 के लोकसभा चुनावों के पूर्व, मुख्य चुनाव आयुक्त एन. गोपालस्वामी ने तब की राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल को चुनाव आयुक्त नवीन चावला की हटाने की सिफारिश की, जो मुख्य चुनाव आयुक्त का पद संभालने को तैयार था। गोपालस्वामी ने चावला के द्वारा एक विशिष्ट राजनीतिक पार्टी के पक्षपाती आचरण के संदेह को दर्ज किया। हालांकि राष्ट्रपति ने सिफ़ारिश को अस्वीकार किया। इसके बाद, गोपालस्वामी के अगले महीने के सेवानिवृत्ति के बाद चावला ने मुख्य चुनाव आयुक्त का पद संभाला और 2009 के लोकसभा चुनावों का प्रबंधन किया।
अब जब चर्चा चुने गए नए चुनाव आयोग के अधिकारियों, ग्यानेश कुमार और सुखबीर सिंह संधू की है तो संधू 1988 बैच के उत्तराखंड कैडर के सेवानिवृत्त आईएस अधिकारी हैं और ग्यानेश कुमार 1988 बैच के केरल कैडर के सेवानिवृत्त आईएस अधिकारी हैं। ध्रुव राठी ने इन अधिकारियों की ईमानदारी और निष्ठा पर सवाल उठाते हुए कहा कि ग्यानेश कुमार गृह मंत्री अमित शाह के अंदर काम कर चुके हैं। राठी ने यह बताना भूल गया कि UPA सरकार के दौरान ग्यानेश कुमार 2007 से 2012 तक रक्षा मंत्रालय में संयुक्त सचिव (रक्षा उत्पादन) के रूप में कार्यरत थे। दोनों आईएएस अधिकारी बहुत ही वरिष्ठ हैं और यह स्पष्ट है कि वो पूर्व की सरकारों में काम कर चुके हैं।
दावा 6: राठी अपने वीडियो में भारतीय जनता पार्टी की प्रत्याशी का वीडियो क्लिप दिखाते हुए कहते हैं कि अगर बीजेपी तीसरी बार सत्ता में आती है, तो संविधान को बदल देगी।
विश्लेषण: अमेरिका में पहले संशोधन के द्वारा लोगों को अभिव्यक्ति की आजादी मिली थी, जबकि पंडित नेहरू ने भारतीय संविधान में पहला संशोधन करके आर्टिकल 19 (2) को जोड़ा था। यह संशोधन अभिव्यक्ति की आजादी को छीन लिया। संविधान के लागू होने से लेकर अब तक कुल 106 बार संविधान में संशोधन किया गया है। सन् 1950 से 2013 तक भारतीय संविधान में कुल 98 बार संशोधन किए गए हैं, हालांकि 2014 से 2023 तक केवल 8 बार हुए हैं।
भारतीय संविधान की संशोधन प्रक्रिया को भारतीय संविधान के भाग XX (धारा 368) में निर्धारित किया गया है। इसका अर्थ है कि भारतीय संविधान में आवश्यकताओं के अनुसार परिवर्तन करना संविधानिक होता है।
दावा 7: ध्रुव राठी ने इलेक्टोरल बॉन्ड पर मोदी सरकार पर सवाल उठाए।
इलेक्टोरल बांड के माध्यम से राजनीतिक दलों को चंदा देने के लिए किसी भी व्यक्ति या कंपनी को स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के माध्यम से बांड खरीदने की योजना बनाई गई थी। स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के पास प्रत्येक इलेक्टोरल बांड का विवरण था, जो कुछ दिनों पहले चुनाव आयोग की वेबसाइट पर प्रकाशित किया गया था।
ध्रुव राठी यह बताना भूल गए कि इसी इलेक्टोरल बॉन्ड से उनकी पसंदीदा पार्टियों को भी चंदा मिला है। आखिर वो इस मामले में ईमानदार हैं तो इस रकम को वापस क्यों नहीं लौटा देतीं? साथ ही राठी से यह सवाल ज़रूर पूछना चाहिए कि इलेक्टोरल बांड के पहले राजनीतिक दलों को चंदा देने के क्या नियम थे? क्या वे कितना पारदर्शी थे?
Tv9 भारतवर्ष की रिपोर्ट कहती है कि चुनावी बॉन्ड योजना से पहले पार्टियों को चंदा अधिकतर नगदी के तौर पर मिलता था, जिससे राजनीतिक दलों और चुनावी प्रक्रिया में काले धन को बढ़ावा मिलता था। किसी पार्टी को चंदा देने वालों को अक्सर विरोधी पार्टी से निशाना बनाए जाने की आशंका रहती थी। इलेक्टोरल बॉन्ड से पहले की स्थिति को देखें तो सभी राजनीतिक दलों के लिए आयकर रिटर्न दाखिल करते समय पार्टी फंड में 20 हजार रुपये से अधिक का योगदान देने वाले दानकर्ताओं के नाम और अन्य विवरण रिपोर्ट करना अनिवार्य था। 20 हजार से कम राशि दान करने वालों की जानकारी नहीं मांगी जाती थी, इस दान को अज्ञात स्रोतों से आमदनी के रूप में घोषित किया जाता था और ऐसे दानदाताओं के विवरण सार्वजनिक डोमेन में उपलब्ध नहीं होते थे। एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेट रिफॉर्म्स यानी एडीआर ने 2017 में एक अध्ययन के जरिए पाया कि 2004-5 और 2014-15 के बीच भारत में राजनीतिक दलों की कुल आय 11 हजार 367 करोड़ रुपये थी, जिसमें 20 हजार से कम दान वाले दान से प्राप्त आमदनी कुल आय का 69 प्रतिशत हिस्सा थी। यानी 7833 करोड़ रुपये अज्ञात स्रोतों से आए थे, जबकि राजनीतिक दलों की कुल आय का केवल 16 प्रतिशत हिस्सा ही ज्ञात दानदाताओं से था।
2004 के बाद से 2015 तक 6 राष्ट्रीय पार्टियों (कांग्रेस, बीजेपी, बीएसपी, एनसीपी, सीपीआई, सीपीएम) और 51 क्षेत्रीय पार्टियों को कुल आय 11,367.34 करोड़ रुपये में से अज्ञात स्रोतों से आय 7,832.98 करोड़ रुपये थी। इसमें राष्ट्रीय पार्टियों को 71 फीसदी फंडिंग अज्ञात स्रोतों से हुई और क्षेत्रीय पार्टियों के लिए यह 58 फीसदी थी. 11 साल में कांग्रेस की 83 फीसदी फंडिंग, बीजेपी की 65 फीसदी, एसपी की 95 फीसदी और शिरोमणि अकाली दल की 86 फीसदी फंडिंग का पता नहीं चला पाया था कि किसने उनको यह रकम दी है।
इस कार्यकाल में राष्ट्रीय पार्टियों को अज्ञात स्रोतों से मिलने वाली फंडिंग में 313 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई जबकि क्षेत्रीय पार्टियों की फंडिंग में 652 प्रतिशत की बढ़ोतरी देखी गई. संयोग से बसपा एकमात्र ऐसी पार्टी है, जो लगातार घोषणा करती है कि उसे 20,000 रुपये से अधिक का चंदा नहीं मिला. बसपा का कहना था कि उसे अज्ञात स्रोतों से 100 प्रतिशत दान मिला है और पिछले 11 वर्षों में कुल आय में 2057 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई थी।
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दावा 8: चुनाव से पहले कांग्रेस पार्टी के ऊपर इनकम टैक्स की नोटिस जारी किया गया और पार्टी के बैंक खातों को सीज कर दिया गया है। कम्युनिस्ट पार्टी के ऊपर भी इनकम टैक्स डिपार्टमेंट ने फाइन लगाया है।
2016 के दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले में आधार पर कांग्रेस पार्टी के साथ आयकर विभाग का विवाद साल 1994-95 का है। यह मामला जनवरी 1996 में शुरू हुआ था। कांग्रेस ने अपनी रिटर्न नहीं दाखिल की थी। उनसे रिटर्न दाखिल करने के लिए कहा गया था। रिटर्न दाखिल करने के बाद भी एक नोटिस जारी किया गया फिर भी पार्टी ने अपनी मनमानी किया। जैसा कि माननीय दिल्ली उच्च न्यायालय की सुनवाई के बाद, एसेसिंग अधिकारी ने निर्धारित किया कि आईएनसी को छूट नहीं मिली क्योंकि आवश्यक जानकारी प्रदान नहीं की गई थी।
इसके बाद कांग्रेस पार्टी ने सीआईटी(ए) के समक्ष अपील की, जो आदेश को स्वीकृत करते हुए यह निर्णय लिया कि “आईएनसी ( कांग्रेस पार्टी) ने समय पर खाते दाखिल करने का अपना कानूनी जिम्मेदारी नहीं निभाई थी”। इसके बाद कांग्रेस पार्टी ने ITAT के समक्ष अपील की। 2001 में, ITAT ने भी कांग्रेस पार्टी को इनकम टैक्स छूट देने से मना कर दिया। इस बीच, आईएनसी ने दिल्ली हाईकोर्ट में अपील की। दिल्ली हाईकोर्ट ने 2016 में अपील को खारिज किया। फिर आईएनसी ने इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी।
मुख्य बात यह है कि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का 1994-95 के आयकर मामला आज “पुनः खोला” नहीं जा रहा है जैसा कि दावा किया जा रहा है। यह 1997 से विवादास्पद रहा है। ध्रुव राठी ने अपने वीडियो में यह नहीं बताया कि इनकम टैक्स डिपार्टमेंट ने 01 अप्रैल 2024 को सुप्रीम कोर्ट में बताया कि आगामी लोकसभा चुनाव को मद्दे नजर रखते हुए कांग्रेस पार्टी के ऊपर चल रहें 3500 करोड़ रुपए के मामले में जुलाई तक छूट दी गई है।
ध्रुव राठी आगे कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया को मिले इनकम टैक्स नोटिस को भी तानाशाही बताया। लेकिन राठी ने यह नहीं बताया कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (सीपीआई) को आयकर विभाग द्वारा एक नोटिस सेव किया गया है, क्योंकि उसके दो राज्यीय इकाइयों को पुराने स्थायी खाता संख्या (पीएन) कार्ड का उपयोग करते हुए आयकर रिटर्न फाइल करने के लिए दोषी पाया गया है।
The Hindu की रिपोर्ट के मुताबिक, ‘आयकर विभाग ने जुलाई 2022 में सीपीआई(मार्क्सवादी) को नोटिस दिया और 2016-17 के लिए कम्युनिस्ट पार्टी को टैक्स छूट वापस लेते हुए ₹15.59 करोड़ टैक्स लगाया, क्योंकि पार्टी ने अपने आयकर रिटर्न में बैंक खाता घोषित नहीं किया था।‘
दावा 9: नरेंद्र मोदी को तानाशाह हैं, कुछ लोग “मोदी हटाओ, देश बचाओ” के पोस्टर लगा रहे थे, जिन्हें सरकार ने गिरफ्तार कर लिया।
राठी ने अपने वीडियो से लोगों को भ्रमित किया। इस मामले में सिर्फ पोस्टर लगाने की वजह से लोगों को गिरफ्तार नहीं किया गया। अमर उजाला के मुताबिक ‘पोस्टरों पर प्रिंटिंग प्रेस या प्रकाशक का कोई जिक्र नहीं था। इसीलिए इस मामले में पुलिस ने कार्रवाई की थी। ‘मोदी हटाओ, देश बचाओ‘ पोस्टर के मामले में पुलिस ने कहा कि प्रिंटिंग प्रेस अधिनियम और संपत्ति विरूपण अधिनियम की धाराओं के तहत शहर भर के विभिन्न जिलों में प्राथमिकी दर्ज की गई है। स्पेशल सीपी ने यह भी बताया कि आम आदमी पार्टी (आप) के कार्यालय से निकलते ही एक वैन को भी रोका गया। कुछ पोस्टर जब्त किए गए और गिरफ्तारियां की गईं।’
द इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, भारतीय दंड संहिता की धारा 120 बी (अपराधिक साजिश), धारा 427 (पचास रुपये के नुकसान का कारण बनाने वाली दुराचार) और प्रेस और पंजीकरण के किताबों अधिनियम और सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने के रोकथाम अधिनियम के विभिन्न धाराओं में आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया गया था। आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ताओं के खिलाफ FIR दर्ज इसलिए नहीं किया गया था क्योंकि उन्होंने पीएम मोदी के खिलाफ पोस्टर लगाए थे, बल्कि उनके खिलाफ प्रेस और पंजीकरण अधिनियम और सार्वजनिक स्थान को नुक़सान पहुंचाने के आरोप में FIR दर्ज किया गया था। इसके बाद ध्रुव राठी ने दो मामलों का जिक्र करते हुए कहा कि बीजेपी सरकार में पत्रकारों पर मुकदमा दर्ज होता है।
हालाँकि ध्रुव राठी यहाँ बताना भूल गए कि हर राज्य के पास अपनी एक पुलिस व्यवस्था है। गैर बीजेपी शासित राज्यों से भी इस तरह के मामले सामने आए हैं। हाल ही में पत्रकार रचित कौशिक को पंजाब पुलिस ने Due process के बिना गिरफ्तार कर लिया था। क्योंकि रचित कौशिक ने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल के बेटे पुलकित केजरीवाल के खिलाफ भी एक वीडियो प्रसारित किया था, जिसमें आरोप लगाया गया है कि पुलकित केजरीवाल ने दिल्ली में मुख्यमंत्री केजरीवाल के आवास पर ट्रेडमिल लगाई है, और उन्हें भी पुलकित 10 लाख रुपए महीना दिल्ली सरकार से किराया लेते हैं।
मई 2023 में लुधियाना पुलिस ने टाइम्स नाउ की रिपोर्टर भवना किशोर को एक एससी-एसटी कानून के तहत फर्जी मुकदमा दर्ज कर गिरफ्तार किया था। भवना किशोर को गिरफ्तार किया गया था जब वह आम आदमी पार्टी के अरविंद केजरीवाल द्वारा मोहल्ला क्लिनिक का उद्घाटन की रिपोर्ट करने के लिए जा रही थी। मार्च 2022 में छत्तीसगढ़ कांग्रेस सरकार ने सरकार के खिलाफ व्यंग्य लेखन के लिए रायपुर वार्ताकार नीलेश शर्मा को गिरफ्तार किया था। इंडियाव्राइटर्स.कॉम और उसके मैगजीन के संपादक नीलेश शर्मा के खिलाफ कांग्रेस सदस्य खिलावन निषाद ने रायपुर साइबर पुलिस में शिकायत दर्ज की थी, जिसके बाद उनकी गिरफ्तारी हो गई थी। साल 2012 में कांग्रेस सरकार ने कार्टूनिस्ट असीम त्रिवेदी को गिरफ्तार कर, उनके ऊपर देशद्रोह का मुकदमा दायर कर दिया था। इसलिए कि असीम कांग्रेस सरकार में हो रहे घोटालों का पर्दाफाश अपने कार्टून के माध्यम से कर रहे थे।
आखिर ध्रुव राठी को एक ही पार्टी के मामले में तानाशाही क्यों दिख रही है? या वो दूसरी पार्टियों पर जानबूझकर बात नहीं कर रहे हैं? यह सवाल भी उनसे पूछा जाना चाहिए।
दावा 10: संजय राउत का हवाला देते हुए बताया कि मोदी सरकार तानाशाही की सारी हदें पार कर चुकी है क्योंकि MVA गठबंधन के लोकसभा प्रत्याशी अमोल कृतिकर के पास ED ने समन भेजा है।
रुव राठी ने यहाँ भी बताना ज़रूरी नहीं समझा कि अमोल कृतिकर को यह नोटिस खिचड़ी स्कैम के कारण मिला है और अमोल के पिता गजानन कृतिकर एनडीए से सांसद हैं। The Hindu के मुताबिक सितंबर 2023 में मुंबई पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा (ईओडब्ल्यू) ने शिव सेना (यूबीटी) नेता संजय राऊत के करीबी सहायक सुजित पाटकर के खिलाफ एफआईआर दर्ज की। जाँच के दौरान किरतीकर का नाम सामने आया और सितंबर में ईओडब्ल्यू ने उन्हें छह घंटे के लिए पूछताछ की। इस मामले में ED ने संजय राउत के छोटे भाई संदीप राउत से भी पूछताछ की है। इस पूरे प्रकरण में दो चीज़ों पर गौर करना आवश्यक है। पहला यह है कि अमोल कृतिकर को ED ने गिरफ्तार या अपने कस्टडी में नहीं लिया है बल्कि पूछताछ के लिए बुलाया है। दूसरा यह है कि राठी अपने वीडियो में अपने दावे को सच साबित करने के लिए संजय राउत के बयान का हवाला दे रहा हैं। राउत के छोटे भाई संदीप और उनके करीबी सुजीत पाटकर पहले से ही ED के निगरानी में हैं।
दावा 11: कलकत्ता हाई कोर्ट के जस्टिस अभिजीत गंगोपद्याय ने बीजेपी ज्वाइन कर ली, एक रिटायर्ड जस्टिस भारतीय जनता पार्टी से जुड़ता है तो वह अपने कर्याकल की निष्पक्षता का संदेह दिलाता है।
ध्रुव राठी अपने वीडियो में यह साबित करने की कोशिश कर रहे हैं कि यह देश का इकलौता मामला है। पूर्व जस्टिस बहरुल इस्लाम ने 1951 में असम हाई कोर्ट में एडवोकेट के रूप में काम किया जबकि उनका सुप्रीम कोर्ट के वकील के रूप में प्रैक्टिस 1958 में शुरू हुआ। इस बीच 1956 में बहरुल इस्लाम ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हो गए जो उनके राजनीतिक करियर की शुरुआत की गई। 1962 में कांग्रेस ने बहरुल इस्लाम को राज्यसभा के सदस्य के रूप में चुना। उन्होंने 1968 में अपने पहले कार्यकाल को सांसद के रूप में पूरा किया, इसके बाद पुरानी पार्टी ने उन्हें राज्यसभा के सदस्य के रूप में पुनः चुना। वह 1972 तक सांसद के रूप में कार्य करते रहे।
20 जनवरी 1972 को बहरुल इस्लाम को असम और नागालैंड उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया। जो अब गुवाहाटी उच्च न्यायालय के रूप में जाना जाता है। 11 मार्च 1979 को उन्हें इस उच्च न्यायालय के एक्टिंग मुख्य न्यायाधीश के रूप में कार्यभार संभालने का मौका मिला और उन्होंने 7 जुलाई 1979 से 1 मार्च 1980 तक उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के रूप में कार्य किया। 4 दिसंबर, 1980 को उन्हें भारतीय सर्वोच्च न्यायालय में नियुक्त किया गया, जो असामान्य है क्योंकि एक रिटायर्ड न्यायाधीश को सर्वोच्च न्यायालय में उच्चतम अदालत में उत्थान नहीं मिलता। आगे अपना राजनीतिक कैरियर का दूसरा पारी शुरू करने के उन्होंने 12 जनवरी 1983 को भारतीय सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में इस्तीफा दे दिया। कांग्रेस ने बहरुल इस्लाम को भारतीय सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश से असम के बारपेटा क्षेत्र से उम्मीदवार बनाया था। लेकिन बाद में उन्हें फिर से राज्यसभा में भेज दिया गया।
ध्रुव राठी से रिटायर्ड जस्टिस अभिजीत गंगोपद्याय की निष्ठा के ऊपर कई सवाल किए लेकिन बहरुल इस्लाम की सच्चाई को ऐसा दफना दी जैसे कभी कुछ हुआ ही न हो।
दावा 12: ध्रुव राठी ने भारत को तानाशाही देश साबित करने के मुहिम में V-Dem इंडिकेटर का हवाला दिया। V-Dem के अनुसार भारत लिबरल डेमोक्रेसी के रैंकिंग में 104 वें स्थान पर है। रिपोर्ट में लिखा है कि भारत स्वराज्यवाद की दिशा में तेजी से बढ़ रहा है।
यह कोई नई बात नहीं है, अक्सर पश्चिमी देशों के पैमाने पर भारत को नीचा दिखाते हुए आए हैं। लेकिन बात यहां लोकतंत्र की हो रही है। V-Dem अमेरिका को डेमोक्रेसी के पैमाने पर बहुत ऊपर रखता है। अमेरिका में न तो मीडिया स्वतंत्र है और न ही चुनाव। अमेरिकी मीडिया में निष्पक्षता पर कोई सवाल उठाने योग्य है ही नहीं, केवल वहां पक्षपात स्पष्ट रूप से दिखता है। CNN डेमोक्रेटिक पक्ष का समर्थन करता है, जबकि Fox News रिपब्लिकन पार्टी का। इन मीडिया संस्थानों से निष्पक्षता की उम्मीद नहीं की जाती है।
अमेरिका में 50 राज्य हैं। इनमें से 40 से अधिक राज्यों का वोट यह पहले से तय होता है कि वे किस पार्टी को समर्थन देंगे। अंत में, कुछ राज्य जिन्हें “स्विंग स्टेट्स” कहा जाता है, उनके वोट जिस पार्टी के पक्ष में जाते हैं, वह चुनाव जीत जाती है। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति और 2024 के राष्ट्रपति चुनाव के रिपब्लिकन पार्टी के संभावित उम्मीदवार डॉनल्ड ट्रंप के ऊपर अमेरिकी सरकार ने जिस प्रकार से शिंकजा कस रही है, यह किसी से छुपा नहीं है। अमेरिकी सरकार हर हाल में डॉनल्ड ट्रंप को चुनाव लड़ने से रोकने का प्रयास कर रही है।
साल 2020 के राष्ट्रपति चुनाव के बाद जो अमेरिका में दंगे फसाद हुआ, वह आज भी चर्चा का विषय है। अमेरिकी राष्ट्रपति को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ट्विटर से उनका अकाउंट बंद कर देना, यह कहां का लोकतंत्र है। अमेरिका में इतना कुछ होने के बावजूद, ध्रुव राठी और उनके जैसे तमाम लोग, जो पश्चिमी पैरामीटर के हिसाब से भारत को आकते हैं, उन्हें एक बार अमेरिकी लोकतंत्र को देखना चाहिए। और हो सके तो सवाल भी उठाना चाहिए।
दावा 13: लद्दाख में सोनम वांगचुक कोई प्रॉब्लम को लेकर धरना प्रदर्शन कर रहें है।
राठी सोनम वांगचुक द्वारा किए जा रहे प्रोटेस्ट के पीछे का कारण कोई ‘प्रॉब्लम’ कह कर बताता है। असल में सोनम वांगचुक लेह लद्दाख को राज्य का दर्जा प्राप्त करने के लिए प्रदर्शन कर रहे थे। राठी ने यह नहीं बताया कि लेह लद्दाख को केंद्र शासित राज्य का दर्जा दिया गया था तब उन्होंने भारत सरकार का इसका आभार जताया था। उन्होंने पोस्ट कर यह भी कहा कि वो 30 वर्षों से इसकी मांग कर रहे थे। ऐसे में सवाल सोनम वांगचुक से होना चाहिए कि उन्होंने अपना पक्ष क्यों बदला।
THANK YOU PRIME MINISTER
— Sonam Wangchuk (@Wangchuk66) August 5, 2019
Ladakh thanks @narendramodi @PMOIndia
for fulfilling Ladakh's longstanding dream.
It was exactly 30 years ago in August 1989 that Ladakhi leaders launched a movement for UT status. Thank you all who helped in this democratic decentralization! 🙏🙏🙏 pic.twitter.com/X7pmJ5zZin
दावा 14: ध्रुव राठी आगे कहता हैं कि एक समय किसान जो नरेंद्र मोदी सरकार का समर्थक था, वह आज उसका खामियाजा भुगत रहा है।
ध्रुव राठी ने पंजाब और हरियाणा के कुछ किसानों द्वारा किए गए धरना प्रदर्शन को पूरे भारत के किसानों से तुलना कर दिया। जबकि स्पष्ट है कि कुछ हफ्तों पहले हुआ किसान आंदोलन कांग्रेस पार्टी के इशारों पर हुआ था। वास्तव में, किसानों के लिए भारत सरकार द्वारा लागू की गई योजनाओं का वो लाभ उठाते हैं या उसका नुकसान झेलते हैं, इस पर प्रकाश डालते हैं।
न्यूज़18 की रिपोर्ट के मुताबिक, ‘2022-23 में खाद्य अनाज को MSP पर खरीदने में लगभग 2.28 लाख करोड़ रुपये खर्च किए गए हैं, वहीं b2014-15 में सरकार ने MSP पर फसलें खरीदने में 1.06 लाख करोड़ रुपये खर्च किए थे, यानी लगभग 115 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। मात्रा के मामले में भी, डेटा दिखाता है कि 2014-15 में MSP पर खाद्य अनाज की खरीदी 761.40 लाख मीट्रिक टन से बढ़कर 2022-23 में 1062.69 लाख मीट्रिक टन तक बढ़ गई है।’ सरकार 22 अनिवार्य फसलों और तिलहन के लिए MSP को निर्धारित करती है। 2018-19 बजट में, मोदी सरकार ने पूर्वविधित सिद्धांत को घोषित किया था कि उत्पादन लागत के एक-आधे गुणा के स्तर पर MSP को रखना, जिससे सभी अनिवार्य फसलों के MSP में वृद्धि हुई।
उदाहरण के लिए देखें तो 2023-24 में धान के लिए MSP प्रति क्विंटल रुपये 2183 है, जो 2021-22 से रुपये 243 बढ़ा है। इस वित्तीय वर्ष में गेहूं के लिए MSP रुपये 2275 है, जो दो साल पहले से रुपये 250 बढ़ा है। ज्वार के लिए MSP दो साल में रुपये 442 और रागी के लिए रुपये 469 बढ़ा है, और इस वित्तीय वर्ष में कपास के लिए MSP का वृद्धि रुपये 894 है, जिससे प्रति क्विंटल वर्तमान वित्तीय वर्ष में रुपये 6620 हो गया है।
इसके अतिरिक्त दो दर्जन से अधिक स्कीमें हैं जो भारत सरकार ने किसानों की समृद्धि के लिए लागू की हैं। जैसे कि – प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना, प्रधानमंत्री किसान मनधन योजना प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना और अन्य।
दावा 15: ध्रुव राठी आगे मोदी सरकार पर आलोचना करते हुए कहते हैं कि भारत सरकार 80 करोड़ लोगों को मुफ्त राशन दे रही है क्योंकि उनके पास खुद राशन खरीदने के पैसे नहीं हैं।
विराठी ने यह बात विपक्षी दलों के नेताओं की बात कही है। दुनिया की हर सरकार अपनी जनता को कुछ ना कुछ मुफ्त में ज़रूर देती है। जैसे ध्रुव राठी जर्मनी में रहता है, जहां की सरकार शिक्षा मुफ्त में प्रदान करती है। क्या इसका मतलब है कि जर्मन नागरिक इतने गरीब हैं कि वह शिक्षा का खर्च खुद नहीं उठा सकते? दुनिया का सबसे अमीर देश अमेरिका में तो 85 प्रतिशत से ऊपर के बच्चे सरकारी स्कूलों में पढ़ते हैं। कुछ ऐसे ही देश जैसे फ्रांस, लक्जमबर्ग, कनाडा, एस्टोनिया, बेल्जियम में यातायात की सेवाएं मुफ्त हैं। हर देश और सरकार की अपनी प्राथमिकता होती है कि वह अपने नागरिकों की देखभाल करें और उनकी जरूरतों को पूरा करें।
निष्कर्ष: ध्रुव राठी अपने वीडियो में देश में अलग अलग मुद्दों को बताया लेकिन यहाँ बड़ी होशियारी से सिर्फ आधी बातों को शामिल किया। उसका यह वीडियो आम जनता को लोकतंत्र और तानाशाही के नाम पर डराने और समाज में सनसनी फैलाने का प्रयास है।