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क्या 1971 के बांग्लादेश के सत्याग्रह में पीएम मोदी ने हिस्सा नहीं लिया था? फैक्ट चेक

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1 सितंबर, 2022 को, द वायर ने एक लेख प्रकाशित किया जिसके शीर्षक में कहा गया, “पीएमओ के पास मोदी के दावे का कोई रिकॉर्ड नहीं है कि उन्हें बांग्लादेश की स्वतंत्रता के लिए सत्याग्रह के कारण जेल में डाल दिया गया था।”

इसी लेख को ट्विटर पर पोस्ट करते हुए द वायर ने ढाका में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बयान का हवाला देते हुए लिखा, “मेरी उम्र 20-22 साल रही होगी जब मैंने और मेरे कई साथियों ने बांग्‍लादेश के लोगों की आजादी के लिए सत्‍याग्रह किया था। बांग्‍लादेश की आजादी के समर्थन में तब मैंने गिरफ्तारी भी दी थी और जेल जाने का अवसर भी आया था।”

आर्काइव लिंक
स्त्रोत : द वायर

इसके अलावा, सन टीवी नेटवर्क के तमिल न्यूज चैनल सन न्यूज ने एक इन्फोग्राफिक पोस्ट किया, “ऐसा कोई दस्तावेज नहीं है कि पीएम मोदी बांग्लादेश लिबरेशन वॉर के समर्थन में सत्याग्रह से जेल गए – पीएम कार्यालय ने आरटीआई सवाल का जवाब दिया!

आर्काइव लिंक

फैक्ट चेक

दावे की पड़ताल के लिए हमने कुछ कीवर्ड की मदद से गूगल सर्च किया। इस दौरान हमें टाइम्स ऑफ इंडिया के अंग्रेजी अखबार छपा एक लेख मिला, जिसमें बताया गया था कि जनसंघ ने अगस्त 1971 में बांग्लादेश सत्याग्रह शुरू किया था। उस समय अटल बिहारी वाजपेयी जनसंघ के अध्यक्ष थे, जिन्होंने सत्याग्रह को संबोधित किया था। सत्याग्रह आंदोलन 12 दिनों तक चला था। इस दौरान हजारों जनसंघ कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया गया और सत्याग्रह के आखिरी दिन 1200 महिलाओं और बच्चों समेत करीब 10 हजार कार्यकर्ताओं को जेल में डाल दिया गया।

Source: Times of India

इसके अलावा हमें इकोनॉमिक टाइम्स के एक लेख में 1971 में बांग्लादेश सत्याग्रह के दौरान अटल बिहारी वाजपेयी के भाषण की एक तस्वीर प्रकाशित मिली। तस्वीर के कैप्शन में लिखा है, “जनसंघ अध्यक्ष के रूप में, वाजपेयी ने अगस्त 1971 में दिल्ली में एक विशाल रैली को संबोधित करते हुए भारत सरकार से बांग्लादेश को तत्काल मान्यता देने की मांग की।”

Source: Economic Times

सरकार की विदेश मंत्रालय की वेबसाइट ने अटल बिहारी वाजपेयी के भाषण का एक अंश साझा किया है, जो उन्होंने 6 दिसंबर 1971 को भारतीय संसद में विपक्षी सांसद के रूप में दिया था। अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा था, ‘देर से ही सही, बांग्लादेश को मान्यता देकर एक सही कदम उठाया गया है। इतिहास बदलने की प्रक्रिया हमारे सामने चल रही है। और नियति ने इस संसद को, इस देश को, ऐसे महत्वपूर्ण क्षेत्र में रखा है, जब हम न केवल मुक्ति संग्राम में अपने प्राणों की आहुति देने वालों के साथ लड़ रहे हैं, बल्कि हम इतिहास को एक नई दिशा देने का भी प्रयास कर रहे हैं। आज बांग्लादेश में अपनी आजादी के लिए लड़ने वालों और भारतीय सैनिकों का खून एक साथ बह रहा है। यह खून ऐसे संबंधों का निर्माण करेगा जो किसी दबाव से नहीं टूटेंगे, जो किसी कूटनीति का शिकार नहीं होंगे। बांग्लादेश की मुक्ति अब निकट आ रही है।’

इसके अलावा, 2015 में बांग्लादेश ने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को फ्रेंड्स ऑफ बांग्लादेश लिबरेशन वॉर अवार्ड से सम्मानित किया था। हालांकि, वाजपेयी अपनी खराब सेहत के कारण पुरस्कार लेने नहीं जा सके थे। इसलिए, प्रधानमंत्री मोदी ने उनकी ओर से पुरस्कार ग्रहण किया। यह प्रशस्ति पत्र भारत सरकार के विदेश मंत्रालय द्वारा पोस्ट किया गया था।

जांच में आगे हमें एसोसिएटेड प्रेस के आर्काइव में 2 अगस्त 1971 और 12 अगस्त 1971 के वीडियो फुटेज भी मिले। जिसमें 25 मई 1971 को बांग्लादेश की स्वतंत्रता के समर्थन में जनसंघ की रैली के फुटेज शामिल हैं।

वहीं 2015 में बांग्लादेश से इस सम्मान को लेते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि पहली बार बांग्लादेश के लिए आन्दोलन में अपनी सहभागिता का जिक्र किया था। पीएम मोदी ने कहा कि आज के इस अवसर पर ये सबसे बड़े आनंद का विषय है कि उस युद्ध की स्मृति में अवार्ड दिया जा रहा है और महामहिम राष्ट्रपति जी के हाथों से दिया जा रहा है, जो स्वंय एक गौरवशाली मुक्ति योद्धा रहे हैं और उनके हाथों से सम्मान हो रहा है, ये अपने आप में एक बड़े गौरव की बात है। और दूसरी बात बंग-बंधु, जिनके नेतृत्व में, जिनके मार्गदर्शन में, बांग्लादेश ये लड़ाई लड़ा और जीता, उनकी बेटी की उपस्थिति में ये सम्मान प्राप्त हो रहा है। और तीसरी एक बात जो शायद मैंने पहले कभी बताई नहीं है वो मुझे आज बताते हुए जरा गर्व होता है।

उन्होंने कहा कि ‘मैं राजनीतिक जीवन में तो बहुत देर से आय़ा। ’98 के आखिरी-आखिरी काल खंड में आय़ा लेकिन एक नौजवान एक्टिविस्ट के नाते, एक युवा वर्कर के रूप में जो कि मैं राजनीतिक दल का सदस्य नहीं था, मैं भारतीय जनसंघ का कभी कार्यकर्ता नहीं रहा लेकिन जब अटल जी के नेतृत्व में भारतीय जनसंघ ने बांग्लादेश के निर्माण के समर्थन के लिए एक सत्याग्रह किया और उस सत्याग्रह में एक स्वयंसेवक के रूप में मैं मेरे गांव से दिल्ली आया था। जो एक गौरवपूर्ण लड़ाई आप लोग लड़े थे और जिसमें हर भारतीय आपके सपनों को साकार होते देखना चाहता था, उन करोड़ों सपनों में एक मैं भी था, उस समय उन सपनों को देखता था।’

वरिष्ठ पत्रकार नीलांजन मुखोपाध्याय ने इकोनॉमिक टाइम्स पर 2015 में प्रकाशित अपने आर्टिकल में बांग्लादेश के लिए सत्याग्रह में नरेंद्र मोदी की मौजूदगी का जिक्र किया है। उन्होंने लिखा कि नरेंद्र मोदी 1971 में अटल बिहारी वाजपेयी की अगुवाई में दिल्ली में जनसंघ के सत्याग्रह में शामिल हुए थे, मोदी को थोड़े समय के लिए तिहाड़ जेल में रखा गया था।

नीलांजन मुखोपाध्याय ने भी अपनी पुस्तक ‘नरेंद्र मोदी: द मैन, द टाइम्स’ में इसी बात का उल्लेख किया है।

Source: Narendra Modi: The Man, the Times

पत्रकार ब्रजेश कुमार सिंह नरेंद्र मोदी की लिखी किताब ‘संघर्ष मा गुजरात’ का कवर और बैक कवर शेयर किया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस किताब को 1978 में लिखा था, उस वक्त उनकी उम्र करीबन 22 वर्ष थी। यह किताब आपातकाल में गुजरात की भूमिका को लेकर लिखी है। इस किताब में लेखक नरेंद्र मोदी का परिचय देते हुए गुजराती में एक लाइन लिखी है कि ‘बांग्लादेश के सत्याग्रह के समय तिहाड़ जेल होकर आए।’

किताब के पिछले कवर पर एक विवरण लिखा है। दूसरे-अंतिम पैराग्राफ की आखिरी लाइन में लिखा है, “अगौ बांग्लादेश सत्याग्रह सम तिहाड़ जेल जाई अलेवा छे,” यानी, “इससे पहले, वे बांग्लादेश सत्याग्रह के दौरान तिहाड़ जेल गए थे।”

Back cover of book ‘Sangharsha Ma Gujarat’

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जय हिन्द। 

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