Home हिंदी अविमुक्तेश्वरानंद की जाति को लेकर नहीं हुआ विरोध, दिलीप मंडल का दावा है फर्जी
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अविमुक्तेश्वरानंद की जाति को लेकर नहीं हुआ विरोध, दिलीप मंडल का दावा है फर्जी

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मध्यप्रदेश के नरसिंहपुर में ज्योतिष और द्वारका पीठ के प्रमुख शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती की समाधि के बाद उनके उत्तराधिकारियों का पट्टाभिषेक की तारीख 23 सितंबर 2022 को तय होगी. ज्योतिष पीठ के प्रमुख के तौर पर अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती और द्वारका पीठ के प्रमुख के तौर पर स्वामी सदानंद सरस्वती का चुनाव किया गया है.

हालांकि इसी बीच दलित चिंतक दिलीप मंडल नें दावा किया है कि अविमुक्तेश्वरानंद को शंकराचार्य बनाया गया है. लेकिन चूँकि वे ओबीसी से हैं, इसलिए हिंदू महंत उनका विरोध कर रहे हैं.

18 सितम्बर 2022 को किए गए एक ट्वीट में मंडल नें लिखा, “शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती के निधन के बाद अविमुक्तेश्वरानंद को शंकराचार्य बनाया गया है. लेकिन चूँकि वे ओबीसी से हैं, इसलिए हिंदू महंत उनका विरोध कर रहे हैं. सती पर रोक के बाद हिंदू समाज में पहली बार इतना बड़ा सुधार हुआ है. हमारे भाई अविमुक्तेश्वरानंद का विरोध बंद हो.”

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Fact Check

हमनें दिलीप मंडल के दावे की पड़ताल की तो दावे की सच्चाई कुछ और ही निकली.

अपनी पड़ताल के लिए सबसे पहले हमनें यह जानने की कोशिश की कि क्या अविमुक्तेश्वरानंद ओबीसी समाज से हैं! इंटरनेट पर सर्च करने पर हमें अविमुक्तेश्वरानंद से संबंधित कई मीडिया रिपोर्ट्स मिलीं. ऐसी ही अमर उजाला की रिपोर्ट में बताया गया कि ज्योतिष्पीठ की कमान पाने वाले अविमुक्तेश्वरानंद का जन्म उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले की पट्टी तहसील के बाभनपुर गांव में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था. उनके बचपन का नाम उमाशंकर पाण्डेय था. उनके पिता का नाम रामसुमेर पांडेय था जिनके दो बेटे गिरिजाशंकर पांडेय व उमाशंकर पांडेय व छह बेटियां हैं। उमांशकर पांचवें नंबर पर थे।

इसके अलावा कई अन्य रिपोर्ट्स में साफ़ बताया गया है कि स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद का जन्म ब्राह्मण (पाण्डेय) परिवार में हुआ था. इसलिए दिलीप मंडल का दावा यहीं से भ्रामक हो जाता है कि जब अविमुक्तेश्वरानंद का सम्बन्ध ही ओबीसी समाज से नहीं है तो उनकी जाति के कारण उनके विरोध का सवाल ही नहीं उठता.

दिलीप मंडल के दूसरे दावा कि, अविमुक्तेश्वरानंद का हिंदू महंत विरोध कर रहे हैं, की पड़ताल के लिए हमनें इंटरनेट खंगाला. इस दौरान हमें दैनिक जागरण की एक रिपोर्ट मिली जिसमें बताया गया कि विवाद घोषणा के तौर-तरीकों को लेकर है जिसे संत परंपरा के विरुद्ध करार दिया गया.

श्रीपंचदशनाम जूना अखाड़ा के महामंडलेश्वर और जीवनदीप आश्रम के परमाध्यक्ष स्वामी यतींद्रानंद गिरि महाराज ने कहा, “उत्तराधिकारी की घोषणा (रस्म पगड़ी) कार्यक्रम, गृहस्थ में तेरहवीं के दिन और संत समाज में षोडषी यानी सोलहवें दिन होने वाले समारोह में की जाती है।

इन तमाम बिंदुओं के विश्लेषण से साफ़ है कि दिलीप मंडल द्वारा किए गए दावों कि, अविमुक्तेश्वरानंद को शंकराचार्य बनाया गया है लेकिन चूँकि वे ओबीसी से हैं, इसलिए हिंदू महंत उनका विरोध कर रहे हैं, पूरी तरह से फर्जी हैं.

तथ्य यह है कि अविमुक्तेश्वरानंद का जन्म ब्राह्मण परिवार में हुआ था और उनके शंकराचार्य बनने का विरोध भी पट्टाभिषेक की तिथि व तौर तरीकों को लेकर कुछ संतों द्वारा ही किया गया है.

Claimअविमुक्तेश्वरानंद को शंकराचार्य बनाया गया है लेकिन चूँकि वे ओबीसी से हैं, इसलिए हिंदू महंत उनका विरोध कर रहे हैं
Claimed byदिलीप मंडल
Fact Checkदावा फर्जी है, अविमुक्तेश्वरानंद का जन्म ब्राह्मण परिवार में हुआ था और उनके शंकराचार्य बनने का विरोध भी पट्टाभिषेक की तिथि व तौर तरीकों को लेकर कुछ संतों द्वारा ही किया गया है

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जय हिन्द। 

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