सोशल मीडिया पर एक ग्राफिक तस्वीर वायरल हो रही है, जिसमें दावा किया गया है कि RSS के द्वितीय सरसंघचालक और विचारक माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर ने अपनी पुस्तक We and Our Nationhood Identified में लिखा था कि जब भी सत्ता हाथ लगे तो सबसे पहले सरकार की धन सम्पत्ति, राज्यों की जमीन और जंगल पर दो तीन विश्वनीय धनी लोगों को सौंप दे।95% जनता को भिखारी बना दे उसके बाद सात जन्मों तक सत्ता हाथ से नहीं जाएगी। वायरल ग्राफिक में आगे लिखा है कि मैं सारी ज़िन्दगी अंग्रेज़ो की गुलामी करने के लिए तैयार हूं लेकिन जो दलित पिछड़ों और मुसलमानों को बराबरी का अधिकार देती हो ऐसी ज़िन्दगी मुझे नहीं चाहिए।
ये ग्राफिक तस्वीर रंगालाल गुर्जर, नूतन परमार, और इंद्रजीत बराक ने शेयर किया है.
— Ranglal gurjar chhawadi Kota (@Ranglal81414215) February 19, 2025
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फैक्ट चेक
वायरल हो रहे इस दावे की सत्यता जांचने के लिए हमने मामले से जुड़े कीवर्ड्स का उपयोग करके गूगल पर खोज की। इस दौरान हमें पता चला कि ‘We and Our Nationhood Identified’ नामक कोई पुस्तक माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर ने लिखी ही नहीं है। वास्तव में, उनकी पुस्तक का नाम ‘We, or Our Nationhood Defined’ है। इसके बाद, हमने Internet Archive पर उनकी पुस्तक को पढ़ा, लेकिन हमें उसमें ऐसा कोई भी बयान नहीं मिला, जिसका जिक्र वायरल ग्राफिक में किया गया है।
इस पड़ताल को आगे बढ़ाते हुए, हमने यह जानने की कोशिश की कि गोलवलकर का देश की संपत्ति और संसाधनों को लेकर क्या दृष्टिकोण था। इस दौरान हमें Golwalkarguruji वेबसाइट पर उनके विचारों से संबंधित जानकारी मिली। गोलवलकर का मानना था कि,‘धन-संपत्ति का उपयोग समाज की सेवा के लिए होना चाहिए, न कि केवल व्यक्तिगत लाभ के लिए। हमें अपनी आवश्यकताओं के अनुसार ही संपत्ति का उपयोग करना चाहिए, क्योंकि यदि हम अपनी मूल आवश्यकताओं को पूरी तरह नज़रअंदाज करेंगे, तो समाज की सेवा करने की हमारी क्षमता भी प्रभावित होगी। जरूरत से ज्यादा संपत्ति अपने लिए रखना समाज के साथ अन्याय करने जैसा है।’
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वे यह भी कहते हैं, ‘व्यक्तिगत संपत्ति के संचय पर एक सीमा होनी चाहिए, और किसी को भी दूसरों की मेहनत का शोषण कर केवल अपने फायदे के लिए संपत्ति इकट्ठा करने का अधिकार नहीं होना चाहिए। जब करोड़ों लोग भूख से जूझ रहे हों, तो दिखावे, फिजूलखर्ची और अनावश्यक उपभोग को बढ़ावा देना गलत है। ‘उपभोक्तावाद’ (Consumerism) हमारी संस्कृति के मूल्यों के खिलाफ है।’
गोलवलकर के अनुसार, ‘अधिक उत्पादन और समान वितरण’ हमारा लक्ष्य होना चाहिए, और आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनना हमारी प्राथमिकता। वे औद्योगीकरण के पक्षधर थे, लेकिन पश्चिमी देशों की अंधी नकल करने के बजाय संतुलित विकास को जरूरी मानते थे। उनका मानना था कि प्रकृति का दोहन करना चाहिए, लेकिन उसका विनाश नहीं।
वे इस बात पर भी जोर देते थे कि श्रम -प्रधान उद्योगों को बढ़ावा दिया जाना चाहिए, ताकि अधिक से अधिक लोगों को रोजगार मिल सके। किसी भी उद्योग में श्रम भी पूंजी के समान महत्वपूर्ण होता है। श्रमिकों को केवल कर्मचारी के रूप में नहीं, बल्कि उद्योग के हिस्सेदार (शेयरधारक) के रूप में भी देखा जाना चाहिए, ताकि उनके श्रम का उचित मूल्य मिल सके।
श्री गोळवलकर गुरूजी के संदर्भ में यह ट्वीट तथ्यहिन है तथा सामाजिक विद्वेष उत्पन्न करने वाला है।संघ की छवि धूमिल करने के उद्देश्य से यह झूठा photoshopped चित्र लगाया हैं।श्री गुरूजी ने कभी भी ऐसे नहीं कहा। उनका पूरा जीवन सामाजिक भेदभाव को समाप्त करने में लगा रहा। @digvijaya_28 https://t.co/1VXBRavJ5f
— Sunil Ambekar (@SunilAmbekarM) July 8, 2023
इस पड़ताल के दौरान हमें RSS के प्रचारक सुनील अंबेकर का जुलाई 2023 का एक बयान भी मिला। उन्होंने लिखा था, “श्री गोळवलकर गुरूजी के संदर्भ में यह ट्वीट तथ्यहिन है तथा सामाजिक विद्वेष उत्पन्न करने वाला है।संघ की छवि धूमिल करने के उद्देश्य से यह झूठा photoshopped चित्र लगाया हैं।श्री गुरूजी ने कभी भी ऐसे नहीं कहा। उनका पूरा जीवन सामाजिक भेदभाव को समाप्त करने में लगा रहा।”
दावा | गोलवलकर अमीरों को देश के संसाधन सौंपना चाहते थे और दलितों, पिछड़ों व मुसलमानों के खिलाफ थे। |
दावेदार | सोशल मीडिया यूजर्स |
निष्कर्ष | हमारी पड़ताल में यह स्पष्ट हो गया कि वायरल ग्राफिक में किया गया दावा झूठा है। गोलवलकर ने ऐसा कोई बयान नहीं दिया था। यह भ्रामक जानकारी फैलाने का प्रयास है, जिसका उद्देश्य सामाजिक विद्वेष बढ़ाना और संघ की छवि को नुकसान पहुंचाना है। |