सोशल मीडिया में लल्लनटॉप का एक वीडियो वायरल है। इस वीडियो में चैनल के एडिटर सौरभ द्विवेदी कुछ युवकों से बात करते हुए नजर आ रहे हैं। इस दौरान महात्मा गांधी की खिलाफ बात कर रहे एक युवक को सौरभ बताते हैं कि देश जब आजादी का जश्न मना रहा था, वो आदमी नोआख़ाली में भटक रहे थे। एडिटर सौरभ द्विवेदी ने गांधी के खिलाफ बोलने वाले एक युवक को उत्साहपूर्वक नीचा दिखाया और उसे वॉट्सएप यूनिवर्सिटी का प्रोडक्ट बताया। ऐसे में सौरभ द्विवेदी द्वारा की गई यह दावें भी जाँच करना आवश्यक है।
(बता दें कि नोआख़ाली आजकल बांग्लादेश में है, जो कि कोलकाता से लगभग 450 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। )
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वायरल दावे की पड़ताल करने के लिए हमने नोआख़ाली की-वर्ड्स से गूगल सर्च किया। इस दौरान हमे NBT पर प्रकाशित एक रिपोर्ट मिली जिसके मुताबिक आजादी से ठीक एक बरस पहले 16 अगस्त 1946 को कलकत्ता में हुए सांप्रदायिक दंगों ने बंगाल की धरती को लाल कर दिया। मुस्लिम लीग ने इस दिन को डायरेक्ट एक्शन डे के तौर पर मनाने का ऐलान किया, जिसके बाद पूर्वी बंगाल में दंगों की आग दहक उठी। इन दंगों की शुरूआत पूर्वी बंगाल के नोआखाली जिले से हुई थी और 72 घंटों तक चले इन दंगों में छह हजार से अधिक लोग मारे गए। 20 हजार से अधिक गंभीर रूप से घायल हुए और एक लाख से ज्यादा लोग बेघर हो गए।
इसके बाद हमें लल्लनटॉप का एक रिपोर्ट मिली। इस रिपोर्ट के मुताबिक बंगाल की हालत देख अक्टूबर 1946 में गांधी कलकत्ता पहुंचे। वहां से 6 नवम्बर को वह नोआख़ाली गए। नोआख़ाली एक मुस्लिम बहुल इलाक़ा था जहां दंगों में हज़ारों हिंदू मारे गए थे। हिंसा के शिकार लोगों के सामने कोई रास्ता नज़र नहीं आ रहा था। चार महीने नोआख़ाली में रहने के बाद फ़रवरी 1947 में वह वापस लौट गए। इस रिपोर्ट में आगे बताया गया है कि 9 अगस्त 1947 को गांधी दुबारा कोलकाता पहुंचे थे लेकिन वो नोआख़ाली नही गए थे।
इसके बाद हमे बीबीसी की एक रिपोर्ट मिली जिसके मुताबिक सांप्रदायिकता की आग में जब नोआखाली झुलस रहा था तब महात्मा गांधी 7 नवंबर 1946 को यहां आए थे। महात्मा गांधी ने चार महीनों तक नोआखाली के हिंसा प्रभावित गांवों का भ्रमण कर शांति समितियां गठित की थी।
पड़ताल में हमे पता चला कि कांग्रेस पार्टी के पूर्व अध्यक्ष जेबी कृपलानी ने महात्मा गाँधी के दौरे का जिक्र ‘गाँधी जीवन और दर्शन‘ नामक पुस्तक में किया है। कृपलानी ने अपनी पुस्तक ‘गाँधी जीवन और दर्शन’ लिखा ही कि कि कैसे गाँधी जी के रास्ते में विष्ठा डाल दी जाती थी और उन्हें परेशान किया जाता था। स्थानीय मुस्लिम नेता आकर अफ़सोस जता कर चले जाते थे, लेकिन लौट कर वही लोग गड़बड़ियाँ करवाते थे। मुस्लिमों पर गाँधी जी की प्रार्थना सभा का असर नहीं होता था,क्योंकि वो मौलवियों के प्रभाव में थे। किसी भी कॉन्ग्रेस नेता ने वहाँ का दौरा नहीं किया। गाँधी जी भी ‘पीड़ित मुस्लिमों’ का दुःख जानने बिहार चले गए। न हिंदुओं में वो आत्मविश्वास भर पाए, न मुस्लिमों को समझा पाए।
निष्कर्ष: पड़ताल से स्पष्ट है कि देश के आजाद होने पर महात्मा गांधी नोआखाली में नहीं थे। गांधी नवंबर 1946 और फरवरी 1947 के बीच चार महीने तक नोआखाली में थे।
दावा | महात्मा गांधी भारत के आजादी के दिन नोआखाली में थे |
दावेदार | सौरभ द्विवेदी |
फैक्ट | महात्मा गांधी आजादी के दिन कलकत्ता में थे |
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