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Electoral Bond: सीरम इंस्टीट्यूट से बीजेपी को चंदा मिलने के बाद अन्य वैक्सीनों को मान्यता न देने का दावा गलत है

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सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद चुनाव आयोग ने तय समय-सीमा से एक दिन पहले ही SBI से मिला इलेक्टोरल बॉन्ड (Electoral Bond) का डेटा अपनी वेबसाइट पर अपलोड कर दिया है। ये डेटा सार्वजनिक होने के बाद भारतीय जनता पार्टी (BJP), भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (INC), और तृणमूल कांग्रेस (TMC) को चुनावी बांड से सबसे अधिक लाभ हुआ है और उन्हें सबसे ज्यादा चंदा मिला है। यह डेटा सामने आने के बाद सोशल मीडिया पर सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया द्वारा बीजेपी को 50 करोड़ रुपये का चंदा देने का दावा वायरल हो रहा है। कई यूजर्स ने इस दावे को शेयर करते हुए आरोप लगाया है कि इसी वजह से भारत में केवल सीरम इंस्टीट्यूट के वैक्सीन को अनुमति दी गई और किसी अन्य वैक्सीन को अनुमति नहीं दी गई। हालांकि हमारी पड़ताल में यह दावा भ्रामक निकला।

कांग्रेस समर्थक रोशन राय ने डोनेशन का स्क्रीनशॉट शेयर करते हुए लिखा, ‘चौंकाने वाला खुलासा सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया ने भाजपा को 50 करोड़ रुपये का दान दिया। क्या यही कारण है कि भारत में किसी अन्य वैक्सीन को अनुमति नहीं दी गई?’

कांग्रेस नेता अविनाश काबडे ने लिखा, ‘सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया ने बीजेपी को 50 करोड़ रुपये का चंदा दिया। क्या यही कारण है कि मोदी जी ने भारत में किसी अन्य वैक्सीन को अनुमति नहीं दी और खुद की तरह वेक्सिन का प्रचार किया?’

कांग्रेस नेता पंखुड़ी पाठक ने लिखा, ‘एक और बड़ी खबर सामने आई है । #Covishield बनाने वाली कम्पनी Serum Institute Of India ने भाजपा को गोपनीय बॉन्ड से 50 करोड़ रुपए दिए थे ! हो सकता है इसके पहले या बाद और भी चंदा दिया गया हो, उसकी जानकारी अभी सार्वजनिक नहीं है। ज्ञात होगा कि अन्य vaccines को भारत में अनुमति नहीं मिली थी…’

असम के अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सदस्य प्रद्युत भुइयां ने लिखा, ‘बड़ा खुलासा: सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया ने चुनावी बांड के रूप में भाजपा को एक ही दिन में 52 करोड़ रुपये का दान दिया। अब आप समझ सकते हैं कि भारत में किसी अन्य वैक्सीन को अनुमति क्यों नहीं दी गई।’

मनीष कुमार एडवोकेट ने लिखा, ‘एक और बड़ी खबर सामने आई है. #Covishield बनाने वाली कंपनी सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया ने गोपनीय बांड के जरिए बीजेपी को दिए थे 50 करोड़ रुपये! संभव है कि इससे पहले या बाद में और भी दान दिया गया हो, इसकी जानकारी अभी सार्वजनिक नहीं है. ज्ञात हो कि अन्य टीकों को भारत में मंजूरी नहीं मिली थी…’

प्रतीक पटेल ने दावा किया, ‘ELECTORAL BOND का सच सामने आ चुका है। जब देश गंभीर महामारी से गुजर रहा था तब हमारे साहब एक डील कर रहें थें। सीरम इंस्टिट्यूट को महज 52 करोड़ लेकर एकाधिकार दिया गया वैक्सीन बनाने का..! मोदी परिवार के मोदीपुत्रों कुछ कहना है?’

Miss. H ने लिखा, ‘सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया ने चुनावी बांड के रूप में भाजपा को 50 करोड़ का दान दिया, यही कारण है कि भारत में COVISHIELD के अलावा किसी अन्य वैक्सीन की अनुमति नहीं दी गई।’

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फैक्ट चेक

हमारी पड़ताल में पता चलता है कि सेंट्रल ड्रग्स स्टैंडर्ड कंट्रोल ऑर्गेनाइजेशन (CDSCO) के अनुसार भारत सरकार द्वारा कई वैक्सीनों को मंजूरी दी गई थी, जिनमें Covishield, Covaxin, Sputnik, Janssen, ZyCoV-D, Corbevax, Covovax, BBV154 और अन्य वैक्सीन शामिल है।

Source: CDSCO
Source: CDSCO

चुनाव आयोग की वेबसाइट में 763 पेजों की दो लिस्ट डाली गई है। एक लिस्ट में इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदने वालों की डिटेल है, दूसरी लिस्ट में राजनीतिक पार्टियों को मिले बॉन्ड का ब्यौरा है। हालांकि ये पता लगाने का कोई तरीका नहीं है कि किस कंपनी ने किस पार्टी को डोनेशन दिया है। इसके अलावा चुनाव आयोग ने अपनी वेबसाइट पर इलेक्टोरल बॉन्ड से जुडी जो भी डेटा जारी किया है, उसमें भी सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया का नाम नहीं है। पड़ताल में हमें पता चला कि सोशल मीडिया पर सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया द्वारा भाजपा को चंदा देने वाला वायरल स्क्रीनशॉट 14 मार्च को प्रकाशित रॉयटर्स की रिपोर्ट से लिया गया है। इस रिपोर्ट भाजपा को इलेक्टोरल बांड नहीं, बल्कि इलेक्टोरल ट्रस्ट से मिलने वाले पैसों के बारे में बताया गया है।

इलेक्टोरल ट्रस्ट और इलेक्टोरल बांड राजनीतिक दलों को दान करने के दो अलग-अलग तरीके हैं। 2013 में कांग्रेस द्वारा इलेक्टोरल ट्रस्ट लाया गया था, जिसमें राजनीतिक दलों को चंदा देने की इच्छुक किसी भी कंपनी को ट्रस्ट को पैसा देना होगा। फिर ट्रस्ट पैसा इकट्ठा करेगा और राजनीतिक दलों को बांटेगा। ट्रस्ट को यह सुनिश्चित करना होगा कि वह अपने द्वारा एकत्र किए गए धन का कम से कम 95% उसी वित्तीय वर्ष में राजनीतिक दलों को दे। इसके अलावा इसका भी रिकॉर्ड रखना होगा कि किसने कितना पैसा दान किया। वहीं बीजेपी की ओर से इलेक्टोरल बांड लाया गया, जिसमें लोग बिना अपनी पहचान बताए चंदा दे सकते हैं। चुनावी बांड के जरिए चंदा देने के लिए कुछ बैंकों से बांड खरीदना पड़ता है और फिर उसे राजनीतिक दलों को देना पड़ता है। चुनावी ट्रस्टों के विपरीत दान पूरी तरह से गुमनाम होता है।

निष्कर्ष: हमारी पड़ताल में स्पष्ट है कि सरकार द्वारा सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया से दान प्राप्त करने के बाद भारत में अन्य टीकों को मंजूरी नहीं देने का आरोप झूठा है। साथ ही सीरम इंस्टीट्यूट ने चुनावी बांड के जरिये किसी को भी दान नहीं किया। सीरम इंस्टीट्यूट ने इलेक्टोरल ट्रस्ट के जरिये 2022 (कोविशील्ड के लॉन्च के दो साल बाद) भाजपा को दान दिया था।

दावा
दावेदार रोशन राय, पंखुड़ी पाठक, मनीष कुमार व अन्य कांग्रेसी
फैक्ट चेक भ्रामक
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