बीते रविवार कोर्ट के आदेश पर एडवोकेट कमिश्नर की टीम ने उत्तर प्रदेश के संभल में स्थित शाही जामा मस्जिद का सर्वे किया। इस दौरान उग्र भीड़ ने पुलिस प्रशासन पर जानलेवा हमला कर दिया। हिंदू पक्ष और स्थानीय लोगों का दावा है कि मस्जिद के स्थान पर पहले हरिहर मंदिर हुआ करता था। वहीं, सोशल मीडिया पर कई लोग दावा कर रहे हैं कि मस्जिद का सर्वेक्षण गैरकानूनी है क्योंकि यह प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट (1991) के तहत संरक्षित है।
अलादीन फासा ने लिखा, ‘संभल की जामा मस्जिद तक़रीबन 500 साल पुरानी है और (places of worship ) एक्ट 1991 जो ये कहता है की 15 अगस्त 1947 से पहले पूजा स्थल जिस रूप मै था उसे बदला नही जा सकता ये कानून इसलिए बनाया गया था ताकि बाबरी मस्जिद जैसा केस ना दोहराया जाए,लेकिन इस देश मै कानून की कोई अहमियत नही रही।‘
संभल की जामा मस्जिद तक़रीबन 500 साल पुरानी है और (places of worship ) एक्ट 1991 जो ये कहता है की 15 अगस्त 1947 से पहले पूजा स्थल जिस रूप मै था उसे बदला नही जा सकता ये कानून इसलिए बनाया गया था ताकि बाबरी मस्जिद जैसा केस ना दोहराया जाए,लेकिन इस देश मै कानून की कोई अहमियत नही रही। pic.twitter.com/V9sTk5sskC
— Alaeddin phasa (@Alaeddinphasa) November 24, 2024
पुष्प राज यादव ने लिखा, ‘आज नफ़रत मुद्दे से सत्ताधारी बनी हुई सरकार अगर मुसलमानों की मस्जिदों को एक एक कर के इसी प्रकार से टारगेट करके प्रशासन और कोर्ट की तरफ से सर्वे का आदेश जारी होगा तो उपासना स्थल अधिनियम 1991 को फlड़ कर फेंक देना चाहिए… अगर उस कानून को मनाना ही नहीं है केवल कागजी तौर पर कानून के रहने का क्या फायदा है?… क्या संभल की शाही जामा मस्जिद के मामले में पूरे बवाल की कहानी में संभल को सांप्रदायिक आग में झोंक देने का षड्यंत्र नहीं है?… जिम्मेदार कौन?‘
आज नफ़रत मुद्दे से सत्ताधारी बनी हुई सरकार अगर मुसलमानों की मस्जिदों को एक एक कर के इसी प्रकार से टारगेट करके प्रशासन और कोर्ट की तरफ से सर्वे का आदेश जारी होगा तो उपासना स्थल अधिनियम 1991 को फlड़ कर फेंक देना चाहिए…
— Pushpraj Yadav (@pushprajyadav97) November 24, 2024
अगर उस कानून को मनाना ही नहीं है केवल कागजी तौर पर कानून के… pic.twitter.com/HzvDUazg0M
सदफ अफरीन ने लिखा, ‘सम्भल मे दोबारा सर्वे कराया गया! जानबूझ कर हिंसा पैदा की गई! 5 मुसलमानो को गोली मारकर हत्या कर दी गई! पर पूजा स्थल अधिनियम, 1991 कहता है– “15 अगस्त, 1947 के पहले बनाए गए किसी भी धर्म के पूजा स्थल को किसी दूसरे धर्म के पूजा स्थल मे बदलना गैरकानूनी है’
सम्भल मे दोबारा सर्वे कराया गया!
— Sadaf Afreen صدف (@s_afreen7) November 25, 2024
जानबूझ कर हिंसा पैदा की गई!
5 मुसलमानो को गोली मारकर हत्या कर दी गई!
पर पूजा स्थल अधिनियम, 1991 कहता है–
"15 अगस्त, 1947 के पहले बनाए गए किसी भी धर्म के पूजा स्थल को किसी दूसरे धर्म के पूजा स्थल मे बदलना गैरकानूनी है" pic.twitter.com/zQGck3FQlT
इसके अलावा इस दावे को शिबली मंजूर, वायरस बाबा, अंसार इमरान और अरशद मदानी ने शेयर किया।
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फैक्ट चेक
इस दावे की सच्चाई जानने के लिए सबसे पहले प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट (1991) की पड़ताल की गई। यह कानून कहता है कि 15 अगस्त 1947 से पहले अस्तित्व में आए किसी भी धर्म के पूजा स्थल को किसी अन्य धर्म के पूजा स्थल में नहीं बदला जा सकता। इस कानून का उल्लंघन करने पर तीन साल तक की जेल और जुर्माने का प्रावधान है। तत्कालीन प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिम्हा राव की सरकार ने यह कानून बाबरी मस्जिद-राम जन्मभूमि विवाद के चलते 1991 में लागू किया था।
इसके बाद, एक्ट की धारा 4 की उपधारा 3 की पड़ताल करने पर पता चला कि यह अधिनियम कुछ विशेष परिस्थितियों में लागू नहीं होता।
यदि कोई स्थल प्राचीन स्मारक और पुरातत्व स्थल और अवशेष अधिनियम (1958) या अन्य किसी कानून के तहत संरक्षित है, तो प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट लागू नहीं होगा।
वहीं पुरातत्व स्थल और अवशेष अधिनियम 1958 के इस कानून के अनुसार, केंद्र सरकार द्वारा संरक्षित किसी भी स्मारक या पूजा स्थल का उपयोग उसकी प्रकृति के विपरीत किसी अन्य उद्देश्य के लिए नहीं किया जा सकता।
पड़ताल में आगे हमें आजतक की 30 नवंबर 2024 की रिपोर्ट मिली। रिपोर्ट के मुताबिक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ने कोर्ट में दाखिल हलफनामे में कहा कि उनकी टीम को संभल की जामा मस्जिद में प्रवेश नहीं करने दिया गया। 1920 से ही इस मस्जिद के संरक्षण और रखरखाव की जिम्मेदारी हमारे पास है। ASI ने कोर्ट को यह भी जानकारी दी कि मस्जिद परिसर में प्राचीन इमारत और पुरातत्व अवशेष अधिनियम (1958) के प्रावधानों का उल्लंघन हो रहा है। जब भी ASI की टीम निरीक्षण के लिए जाती है, स्थानीय लोग उन्हें रोकने के साथ पुलिस में शिकायत भी दर्ज कराते हैं। ASI ने इन अवैध निर्माणों के लिए संबंधित लोगों को कारण बताओ नोटिस जारी किए हैं।
एएसआई ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि मुख्य मस्जिद की इमारत की सीढ़ियों के दोनों तरफ स्टील की रेलिंग लगी है। 19 जनवरी, 2018 को इस अवैध स्टील रेलिंग के निर्माण के संबंध में आगरा कमिश्नर की ओर से संभल कोतवाली में एफआईआर दर्ज कराई गई थी। इसके बाद 23 जनवरी, 2018 को एएसआई के सुपरिटेंडिंग आर्कियोलॉजिस्ट ने संभल जामा मस्जिद कमेटी के अध्यक्ष को कारण बताओ नोटिस जारी किया था। 16 फरवरी, 2018 को आगरा मंडल के एडिशनल कमिश्नर एडमिनिस्ट्रेशन ने संभल के जिलाधिकारी को उपरोक्त स्टील रेलिंग को ध्वस्त करने का आदेश जारी किया था. उस पर आजतक कोई कार्रवाई नहीं हो पाई। ASI ने बताया कि उनकी टीम ने 1998 में आखिरी बार मस्जिद का दौरा किया था। इसके बाद जून 2024 में स्थानीय प्रशासन और पुलिस की मदद से टीम मस्जिद में प्रवेश कर सकी। उस दौरान मस्जिद में कई नए निर्माण कार्य पाए गए।
दावा | मस्जिद का सर्वेक्षण गैरकानूनी है क्योंकि यह प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट (1991) के तहत संरक्षित है। |
निष्कर्ष | प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट (1991) की धारा 3 और 4 तथा पुरातत्व स्थल और अवशेष अधिनियम (1958) के प्रावधानों के अनुसार, संभल की जामा मस्जिद प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट (1991) के तहत सुरक्षित नहीं है। |