सोशल मीडिया पर एक अखबार की कटिंग वायरल है। जिसमें बताया गया है कि नीरव-चोकसी और माल्या सहित कुल 50 डिफाल्टर्स के 68,607 करोड़ रुपए के कर्ज माफ किए हैं। इसे शेयर कर दावा किया जा रहा है कि एक आरटीआई से खुलासा हुआ कि सरकार ने नीरव मोदी, मेहुल चोकसी और विजय माल्या सहित 50 मित्र उद्योगपतियों के कर्ज माफ कर दिए हैं। हालांकि हमारी पड़ताल में यह दावा भ्रामक निकला।
नेहा सिंह राठौर ने एक्स पर लिखा, ‘इन ग़रीबों को कर्ज़माफ़ी की सख़्त ज़रूरत थी… …वरना इनकी ऐयाशी में कमी आ जाती! बाक़ी कर्ज़ के बोझ से दबकर सपरिवार आत्महत्या करने वालों के लिए बैंकों की रिकवरी पॉलिसी में कोई कमी हो तो बताइए!’
डॉ. हीरालाल अलवर ने लिखा, ‘भ्रष्टाचार और वित्तीय अनियमितता पर निंदा पोस्ट: “आरटीआई से हुआ खुलासा! नीरव मोदी, मेहुल चोकसी और विजय माल्या सहित 50 मित्र उद्योगपतियों के 68000 हज़ार करोड़ का कर्ज़ माफ़ किया गया है! चौकीदार अच्छेलाल के राज में ग़रीब किसान का ट्रैक्टर बैंक वाले उठा ले जाते हैं अगर वो 5000/-₹ की किश्त जमा ना कर पाए! लेकिन चौकीदार के डाकू उद्योगपति मित्रों के लिए अरबों का बैंक कर्ज़ माफ़ कर दिया जाता है! यह है चौकीदार की न्याय व्यवस्था! यह है चौकीदार की आर्थिक नीति! क्या यही है अच्छे दिन? क्या यही है सुशासन? चौकीदार को जवाब देना होगा! भ्रष्टाचार और वित्तीय अनियमितता के खिलाफ आवाज उठाने का समय आ गया है!”‘
त्रिभुवन ने लिखा, ‘एक आरटीआई के आधार पर कहा जा रहा है कि नीरव मोदी, मेहुल चोकसी और विजय माल्या सहित 50 उद्योगपतियों के 68,607 करोड़ का कर्ज़ माफ़ किया गया है। #किसान की 5000/- की किश्त जमा न हो तो बैंक वाले उसका ट्रैक्टर उठा ले जाते हैं। कोई होम लोन जमा न करवाए तो उसका घर कुर्क हो जाता है!’
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दावे की पड़ताल के लिए हमने सम्बंधित कीवर्ड की मदद से गूगल सर्च किया। इस दौरान हमें 29 अप्रैल 2020 को प्रकाशित ABP न्यूज़ की एक रिपोर्ट मिली, जिसमें 50 शीर्ष विलफुल डिफाल्टर्स जिनका 68,607 करोड़ रुपये राइट ऑफ करने का जिक्र किया गया है। रिपोर्ट में बताया गया है कि आरटीआई कार्यकर्ता साकेत गोखले ने 50 शीर्ष विलफुल डिफाल्टर्स (जानबूझ कर कर्ज न चुकाने वाला) के बारे में जानकारी हासिल करने 16 फरवरी तक उनके ऋण की मौजूदा स्थिति के बारे में जानने के लिए एक आरटीआई आवेदन दाखिल किया था। तृणमूल कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता साकेत गोखले ने साल 2020 में आरटीआई डालकर यह जानकारी मांगी थी।
वहीं 29 अप्रैल 2020 को प्रकाशित हिंदुस्तान की रिपोर्ट में रिजर्व बैंक के प्रवक्ता ने यह जानकारी दी कि आरबीआई न तो किसी को कर्ज देती है और न उसे राइट ऑफ यानी बट्टे खाते में डालने का काम करता है। ये काम बैंकों की तरफ से एनपीए (फंसे कर्ज) के लिए प्रावधान के बाद किया जाता है। उन्होंने इस बारे में चल रही खबरों को निराधार बताते हुए कहा कि रिजर्व बैंक किसी भी गैर सरकारी और गैर बैंकिंग संस्थानों को न तो कर्ज देता है और न ही उसे राइट ऑफ करता है। रिजर्व बैंक की तरफ से बताया गया है कि राइट ऑफ एक बैंकों की तरफ से की जाने वाली अकाउंटिंग की प्रक्रिया होती है। जहां कर्ज को एक अलग बट्टे खाते में डाल दिया जाता है लेकिन इसका ये मतलब नहीं होता है कि कर्ज की वसूली ही बंद कर दी जाती है। जैसे ही बैंक कर्ज की वसूली कर लेते हैं वो उनके मुनाफे में दिखाई देता है।
इसके अलावा 17 नवम्बर 2016 को Live Mint पर प्रकाशित एक रिपोर्ट में भी एसबीआई ने बताया है कि बट्टा खाता और ऋण माफी अलग-अलग हैं, किसी खाते को तब बट्टे खाते में डाल दिया जाता है जब बैंकों ने खराब ऋण के विरुद्ध पूरी तरह से प्रावधान कर दिया हो। इस खाते को बैलेंस शीट से हटा दिया जाता है क्योंकि इसके खिलाफ सभी लंबित देनदारियां बैंक द्वारा चुका दी गई हैं। हालाँकि बैंक पुनर्भुगतान के लिए उधारकर्ता का पीछा करना जारी रखता है।
इसी तरह साल 2022 में राज्यसभा में कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खरगे के पिछले पांच वर्षों में बट्टे खाते में डाली जाने वाली राशि की जानकारी मांगी थी। जवाब में वित्त राज्यमंत्री डॉ. भागवत कराड ने बताया कि पिछले 5 वित्त वर्ष (2017-18 से 2021-22) में 9,91,640 करोड़ रुपये का बैंक बट्टे खाते में डाला गया है। मल्लिकार्जुन खरगे के सवाल के जवाब में भी बताया गया है कि बट्टे खाते में डाले गए उधारकर्ताओं से वसूली की प्रक्रिया चलती रहती है। बट्टे खाते में डालने से उधारकर्ता को लाभ नहीं होता है।
वहीं 23 फरवरी 2019 को प्रकाशित बिजनेस स्टैंडर्ड की रिपोर्ट में केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि अब तक भगोड़े विजय माल्या, नीरव मोदी और मेहुल चोकसी से 18 हजार करोड़ रुपये वसूल लिये गए हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, ‘केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में बताया कि विजय माल्या, नीरव मोदी और मेहुल चोकसी की 18,000 करोड़ की संपत्तियां जब्त की गईं हैं और यह रकम बैंकों को लौटाई गई है।
निष्कर्ष: पड़ताल से स्पष्ट है कि नीरव मोदी, मेहुल चोकसी और विजय माल्या सहित 50 उद्योगपतियों के कर्ज माफ का दावा गलत है। बट्टा खाते में डाले जाने का मतलब कर्ज की माफी नहीं होती है और फरवरी 2022 तक बैंक इसमें से करीब 18 हजार करोड़ रुपये के कर्ज की वसूली भी कर चुके हैं।
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