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’70 प्रतिशत लोग मोदी को देखना भी नहीं चाहते’, अखबार की यह कटिंग फर्जी है

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सोशल मीडिया पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लेकर अखबार की एक कटिंग वायरल है। इस कटिंग में बताया गया है कि एक सर्वेक्षण के मुताबिक 70 प्रतिशत लोग प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को देखना नहीं चाहते। जब टीवी पर पीएम मोदी का चेहरा देखते हैं, तो वे चैनल बदल देते हैं। हालंकि हमारी पड़ताल में यह खबर फर्जी निकली।

शेखर खरे ने एक्स पर इस अखबार की कटिंग को शेयर कर लिखा, ‘क्या ये सच है आप महानुभावों की महत्तवपूर्ण सलाह ,,,,’

सूरज जी नायक ने लिखा, ‘EVM हटाओ, लोकतंत्र बचाओ’

तिलोक आदिवासी ने लिखा, ‘क्या ये सच है आप महानुभावों की महत्तवपूर्ण सलाह ‘

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फैक्ट चेक

दावे की पड़ताल के लिए हमने कीवर्ड की मदद से गूगल सर्च किया। इस दौरान ऐसी ही एक खबर हमें 11 अक्टूबर 2024 को सामना हिंदी नाम की वेबसाइट पर प्रकाशित मिली। इस रिपोर्ट और वायरल कटिंग की एक जैसी भाषा शैली है हालांकि इस पूरी रिपोर्ट में इस सर्वेक्षण का कोई ठोस सोर्स नहीं बताया गया है। इसके अलावा इस सर्वेक्षण से सम्बन्धित कोई मीडिया रिपोर्ट्स मौजूद नहीं है।

इसके बाद वायरल अखबार की कटिंग से विपरीत एक अन्य रिपोर्ट मिली। 2 सितंबर 2016 को प्रकाशित जनसत्ता की रिपोर्ट में बताया गया है कि ‘नरेंद्र मोदी को 70 प्रतिशत भारतीय 2019 में फिर से प्रधानमंत्री के रूप में देखना चाहते हैं। एक ऑनलाइन पोल में यह जानकारी निकलकर आई। इस सर्वे के अनुसार महिलाओं का प्रतिशत पुरुषों की तुलना में कम रहा। पोल के अनुसार 64 प्रतिशत महिलाएं मोदी को फिर से पीएम पद पर देखना चाहती हैं। यह सर्वे न्‍यूज एप इनशॉर्ट्स ने कराया है। इसमें 63141 लोगों ने सवाल का जवाब दिया। इसमें 70 प्रतिशत ने हां, 17 प्रतिशत ने नहीं और 13 प्रतिशत ने पता नहीं कहा।’

Source: Jansatta

वहीं 1 दिसंबर 2024 को प्रकाशित इप्सोस इंडियाबस की नई रिपोर्ट के अनुसार देश के प्रधानमंत्री के रूप में श्री नरेंद्र मोदी की अप्रूवल रेटिंग नवंबर 2024 में 70 प्रतिशत अंकों की स्वीकृति रेटिंग प्राप्त कर रही है, जो पिछले दौर के बराबर है। लगातार 3 दौर – मई 2024, अगस्त 2024 और अब नवंबर 2024 में स्कोर स्थिर रहा।

Source: Ipsos IndiaBus
दावा 70 प्रतिशत लोग प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को देखना नहीं चाहते।
दावेदार शेकर खरे, सूरज, तिलोग व अन्य
निष्कर्षपीएम मोदी को 70 प्रतिशत लोगों द्वारा नापसंद करने का दावा फर्जी है। वायरल अखबार की कटिंग में किये गए सर्वे का कोई प्रमाणिक सोर्स उपलब्ध नहीं है।

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