सोशल मीडिया पर एक वीडियो क्लिप वायरल कर दावा किया जा रहा है कि ‘महाभारत काल रामायण काल के बाद का है फिर भी महाभारत के किसी भी पात्र द्वारा राम का जयकारा लगाते नहीं सुना. कोई ज्ञानी सज्जन बता सकता है कि ऐसा क्यों है.’
वीडियो क्लिप शेयर करते हुए लौटन राम निषाद ने लिखा, ‘सत्य कथन -महाभारत या द्वापर काल रामायण या त्रेता युग के बाद का समय है, लेकिन महाभारत का कोई पात्र राम नाम का जयकारा नहीं लगाया, आखिर क्यों?’
सत्य कथन -महाभारत या द्वापर काल रामायण या त्रेता युग के बाद का समय है, लेकिन महाभारत का कोई पात्र राम नाम का जयकारा नहीं लगाया, आखिर क्यों? pic.twitter.com/xUlF2x5oaL
— Lautan Ram Nishad (@LautanRamNish) December 31, 2024
इस्लामिक कट्टरपंथी कविश अज़ीज़ ने लिखा, ‘सवाल चाहे जिसे भी पूछा हो पर सुनकर एक पल को मैं भी सोच में पड़ गई! जिसके नाम से एक ऐतिहासिक मस्जिद तोड़ दी गई जिसके नाम पर सड़कों पर लिंचिंग होती है, उसका बोलबाला तो महाभारत काल में भी होना चाहिए था!’
सवाल चाहे जिसे भी पूछा हो पर सुनकर एक पल को मैं भी सोच में पड़ गई! जिसके नाम से एक ऐतिहासिक मस्जिद तोड़ दी गई जिसके नाम पर सड़कों पर लिंचिंग होती है, उसका बोलबाला तो महाभारत काल में भी होना चाहिए था! pic.twitter.com/EF5xyi5PyH
— Karishma Aziz (@karishma_aziz97) January 5, 2025
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फैक्ट चेक
वायरल दावे की पड़ताल करने के लिए हमने संबंधित कीवर्ड्स का उपयोग करते हुए गूगल सर्च किया। इस सर्च के दौरान हमें दिसंबर 2019 में हिंदुस्तान द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट मिली। रिपोर्ट के अनुसार, महाभारत, जिसकी रचना वेदव्यास ने की थी, में कुल 18 पर्व हैं। ये पर्व घटनाओं और विषयों के आधार पर विभाजित किए गए हैं: आदि पर्व, सभा पर्व, वन पर्व, विराट पर्व, उद्योग पर्व, भीष्म पर्व, द्रोण पर्व, कर्ण पर्व, शल्य पर्व, सौप्तिक पर्व, स्त्री पर्व, शांति पर्व, अनुशासन पर्व, आश्रमवासिक पर्व, मौसल पर्व, महाप्रस्थानिक पर्व, स्वर्गारोहण पर्व, अश्वमेधिक पर्व। इसके अलावा, रिपोर्ट में यह भी उल्लेख है कि वेदव्यास ने 18 पुराणों की भी रचना की थी।
इसके बाद हमने गीता प्रेस द्वारा प्रकाशित ‘महाभारत’ का अध्ययन किया। इंटरनेट पर हमें गीता प्रेस का ‘महाभारत’ छह खंडों में उपलब्ध मिला। इसके दूसरे खंड के तीसरे पर्व ‘वनपर्व’ के उपपर्व ‘तीर्थयात्रा पर्व’ में ‘रामायण काल’ का उल्लेख मिलता है। वनपर्व में पांडवों की बारह साल की वनवास यात्रा का विस्तृत वर्णन है।
पड़ताल के दौरान हमने वनपर्व के उपपर्व ‘तीर्थयात्रा’ के अध्याय 146 से 151 तक का गहराई से अध्ययन किया। इन अध्यायों में महाभारत के पात्र भीम और रामायण के पात्र हनुमान के बीच हुई ऐतिहासिक मुलाकात और संवाद का उल्लेख मिलता है।
कथा के अनुसार, जब पांडव और द्रौपदी वनवास के दौरान जंगलों में भटक रहे थे, तब वे कैलाश पर्वत के घने जंगलों में पहुंचे। उसी समय कैलाश पर्वत पर यक्षराज कुबेर का निवास था। कुबेर के नगर में एक सुंदर सरोवर था, जिसमें अद्भुत सुगंध वाले फूल खिले हुए थे। द्रौपदी ने उन फूलों की मोहक सुगंध महसूस की और भीम से आग्रह किया कि वह उनके लिए ये दुर्लभ फूल ले आए। द्रौपदी की इच्छा पूरी करने के लिए भीम तत्परता से उन फूलों को लाने निकल पड़े।
इस प्रसंग में भीम की साहसिक यात्रा और हनुमान के साथ उनकी भेंट का विस्तार से वर्णन किया गया है।
अध्याय में आगे लिखा है, भीम के रास्ते में एक वानर लेटा हुआ था। भीम ने देखा कि उसे लांघकर आगे बढ़ना उचित नहीं होगा, क्योंकि यह मर्यादा के खिलाफ था। उन्होंने विनम्रतापूर्वक वानर से कहा, “कृपया अपनी पूंछ हटा लीजिए, मुझे आगे जाना है।” लेकिन वानर ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। यह देख भीम को क्रोध आ गया। उन्होंने गर्व से कहा, “क्या तुम जानते हो मैं कौन हूं? मैं महाबली भीम हूं। हनुमानजी मेरे बड़े भाई हैं, जिनकी रामायण में महान ख्याति है। उन्होंने श्रीराम की पत्नी सीता को खोजने के लिए समुद्र पार किया था। मैं भी अपने भाई की तरह बलवान और पराक्रमी हूं।”
वानर ने शांति से उत्तर दिया, “यदि तुम इतने बलशाली हो, तो खुद ही मेरी पूंछ हटाकर आगे बढ़ जाओ।” भीम ने पूरी ताकत लगाकर पूंछ हटाने की कोशिश की, लेकिन आश्चर्यजनक रूप से वह पूंछ हिल भी नहीं सकी। लगातार प्रयास के बाद भी असफल रहने पर भीम को अपनी शक्ति का घमंड टूट गया। उन्होंने वानर से क्षमा मांगते हुए प्रार्थना की। तभी वानर ने अपना वास्तविक रूप प्रकट किया—वे स्वयं पवनपुत्र हनुमान थे।
हनुमानजी ने भीम को समझाया, “तुम्हें अपनी ताकत पर घमंड नहीं करना चाहिए। शक्ति और विनम्रता, भले ही विपरीत स्वभाव के हों, लेकिन जब ये दोनों एक साथ व्यक्ति में आ जाते हैं, तो वह महान बन जाता है।” इसके बाद हनुमानजी ने भीम को भगवान श्रीराम के वनवास, सीता माता की खोज और राक्षसराज रावण के वध की पूरी कथा सुनाई। साथ ही उन्होंने धर्म, अधर्म और चारों युगों की विस्तृत जानकारी भी दी। इस प्रसंग में हनुमानजी ने भीम को न केवल शक्ति का सही अर्थ समझाया, बल्कि विनम्रता का महत्व भी सिखाया।
तीसरे पर्व ‘वनपर्व’ के एक उपपर्व, जिसे ‘रामोपाख्यान’ कहा गया है, के अध्याय 273 से 292 तक रामायण का विस्तार से उल्लेख मिलता है। इस उपपर्व में भगवान राम के जन्म का वर्णन किया गया है, जो अयोध्या के राजा दशरथ और रानी कौशल्या के पुत्र थे। उनके बचपन की प्रमुख घटनाओं का भी इसमें उल्लेख है। राम के वनवास, रावण द्वारा सीता के अपहरण और उनकी खोज के लिए राम की यात्रा का भी विस्तार से वर्णन किया गया है।
रामोपाख्यान में हनुमान के चरित्र को विशेष रूप से दर्शाया गया है। इसमें बताया गया है कि कैसे हनुमान ने सीता की खोज के लिए लंका की यात्रा की, रावण के दरबार में जाकर राम का संदेश सीता तक पहुँचाया, और अपनी बुद्धिमत्ता एवं वीरता से रावण के खिलाफ राम की विजय में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। रावण के साथ हुए युद्ध का भी विस्तार से वर्णन मिलता है, जिसमें राम ने रावण पर विजय प्राप्त कर सीता को वापस पाया। इसके बाद राम के अयोध्या लौटने, उनके राज्याभिषेक और एक आदर्श शासन की स्थापना का उल्लेख है।
रामोपाख्यान न केवल एक कथा के रूप में महत्वपूर्ण है, बल्कि इसमें युधिष्ठिर सहित अन्य महाभारत के पात्रों को धर्म, आदर्श और सही मार्ग पर चलने की प्रेरणा भी दी गई है। यह उपाख्यान जीवन के मूल्य और आदर्शों का एक महत्वपूर्ण संदेश देता है।
‘रामोपाख्यान’ में वर्णन मिलता है कि एक बार युधिष्ठिर अपने भाइयों और पत्नी द्रौपदी के साथ वन में समय बिताते हुए अपनी पीड़ा महर्षि मार्कंडेय से साझा करते हैं। उस समय द्रौपदी का अपहरण जयद्रथ द्वारा किया गया था, हालांकि बाद में उसे मुक्त करा लिया गया। इसके बावजूद युधिष्ठिर इस घटना से अत्यंत व्यथित थे। वे महर्षि से कहते हैं कि कोई भी व्यक्ति समय के प्रभाव या अपने कर्मों के फल से बच नहीं सकता, अन्यथा महाराज पांडु की पुत्रवधू, यज्ञ से उत्पन्न द्रौपदी, जिसने सदैव धर्म का पालन किया और बड़ों, ब्राह्मणों तथा ऋषियों का सम्मान किया, उसके साथ ऐसा अपमानजनक घटना क्यों घटती?
युधिष्ठिर के इस प्रश्न के उत्तर में महर्षि मार्कंडेय ने श्रीराम की कथा सुनाई। उन्होंने बताया कि रामचंद्र को भी वनवास के दौरान अपनी पत्नी सीता के अपहरण जैसी विपत्ति झेलनी पड़ी। रावण ने छलपूर्वक सीता का हरण कर लिया, जिससे राम को असहनीय पीड़ा सहनी पड़ी। रावण के छल के समय जटायु नामक गिद्ध ने सीता को बचाने का प्रयास किया, लेकिन रावण ने उसे मार डाला। इसके बाद राम ने सुग्रीव और वानर सेना की सहायता से सीता की खोज की। उन्होंने समुद्र पर सेतु का निर्माण कर लंका तक पहुंचकर रावण से युद्ध किया और अंततः सीता को वापस ले आए।
महर्षि ने यह भी वर्णन किया कि कैसे रामचंद्र पुष्पक विमान से सीता को लेकर अयोध्या लौटे। कुबेर का श्राप भी उस समय पूर्ण हुआ। महर्षि मार्कंडेय ने युधिष्ठिर को आश्वस्त करते हुए कहा कि जिस प्रकार राम ने अपने धर्म, साहस और पराक्रम के बल पर अपनी पत्नी को वापस पाया, उसी प्रकार तुम्हें भी विपत्तियों से घबराने की आवश्यकता नहीं है। धर्म के मार्ग पर चलने से अंततः विजय तुम्हारी ही होगी।
पड़ताल में आगे हमें जनसत्ता द्वारा प्रकाशित अप्रैल 2018 की रिपोर्ट मिली।रिपोर्ट के मुताबिक, रामायण और महाभारत काल से जुड़े तमाम प्रसंग बड़े ही प्रसिद्ध है। इन्हीं प्रसंगों में से एक उन लोगों से जुड़ा हुआ है जो रामायण और महाभारत दोनों ही कालों में थे। इनमे हनुमान और जामवंत समेत कुल पांच लोगों का नाम शामिल है। इन पांचों का जिक्र रामायण और महाभारत दोनों में हुआ है।
दावा | महाभारत में प्रभु श्री राम का उल्लेख नहीं किया गया है |
दावेदार | लौटन राम निषाद और कविश अज़ीज़ |
निष्कर्ष | महाभारत के तीसरे पर्व ‘वनपर्व’ में रामायण और उसके पात्रों का विस्तृत वर्णन किया गया है। इसके ‘तीर्थयात्रा पर्व’ और ‘रामोपाख्यान’ उप-पर्वों में रामायण पर गहन प्रकाश डाला गया है। हनुमान और जामवंत जैसे महान पात्र न केवल रामायण में, बल्कि महाभारत काल में भी महत्वपूर्ण भूमिका में थे। |