भारत की स्वतंत्रता के बाद से इतिहास पर वामपंथियों इतिहासकारों का प्रभाव रहा है। वामपंथी इतिहासकारों ने कांग्रेसी नेताओं की प्रशंसा की है जबकि कांग्रेस विरोधी विचारधारा वाले स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के बारे में भ्रामक प्रचार किया है। इसी क्रम में सोशल मीडिया पर एक पोस्ट वायरल है जिसमें दावा किया जा रहा है कि शहीद भगत सिंह के वकील आसिफ अली थे जबकि भगत सिंह के खिलाफ केस राष्ट्रीय सेवक संघ (आरएसएस) के सदस्य और आरएसएस संस्थापक हेडगेवार के मित्र सुर्यनारायण ने लड़ा था।
इस्लामिक कट्टरपंथी वाजिद खान ने लिखा, ‘भगतसिंह का केस लगने वाला वकील एक मुसलमान था जिसका नाम “आसिफ अली” था ! और जिस गद्दार ने भगतसिंह के खिलाफ केस लड़ा था उस गद्दार का नाम “राय बहादुर सुर्यनारायण शर्मा था ! सूर्यनारायण RSS के संस्थापक हेडगेवार का मित्र और RSS का सदस्य था !‘
कांग्रेस ओवरसीज के इंचार्ज अवी डांडिया ने एक तस्वीर शेयर करते हुए दावा किया, ‘ भगत सिंह का केस लड़ने वाला एक मुसलमान था जिसका नाम आसिफ अली था और जिस गद्दार ने भगत सिंह के खिलाफ केस लड़ा उस गद्दार का नाम राम बहादुर सुर्यनारायण था। सुर्यनारायण आरएसएस के संस्थापक हेडगेवार का मित्र और आरएसएस सदस्य था।‘
Asaf Ali (11 May 1888[1] – 2 April 1953) was an Indian independence activist and noted lawyer. He was the first Indian Ambassador to the United States. He also served as the Governor of Odisha. pic.twitter.com/6Cpj8EhicR
— 🇮🇳 Avi Dandiya (@avidandiya) March 19, 2024
द दलित वॉयस ने लिखा, ‘भगत सिंह का केस लड़ने वाला वकील एक मुसलमान था और उसका नाम “आसिफ अली” था। तो कौन था वो गद्दार जिसने भगत सिंह को फांसी दिलाने के लिए अंग्रेजो की तरफ से केस लड़ा था?उस गद्दार का नाम राय बहादुर सूर्यनारायण शर्मा था, सूर्यनारायण RSS के संस्थापक हेडगेवार का मित्र और RSS का सदस्य था।‘
भगत सिंह का केस लड़ने वाला वकील एक मुसलमान था और उसका नाम "आसिफ अली" था।
— The Dalit Voice (@ambedkariteIND) September 28, 2019
तो कौन था वो गद्दार जिसने भगत सिंह को फांसी दिलाने के लिए अंग्रेजो की तरफ से केस लड़ा था?
उस गद्दार का नाम राय बहादुर सूर्यनारायण शर्मा था, सूर्यनारायण RSS के संस्थापक हेडगेवार का मित्र और RSS का सदस्य था।
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फैक्ट चेक
पड़ताल में हमे बीबीसी और दैनिक भास्कर की बेवसाईट पर प्रकाशित एक रिपोर्ट मिली। इन रिपोर्ट के मुताबिक 1928 में साइमन कमीशन के विरोध में प्रदर्शन करने वालों पर अंग्रेज सरकार ने लाठीचार्ज करवा दिया था, जिसमें लाला लाजपत राय की मौत हो गई। इस मौत से भगत सिंह समेत कई क्रांतिकारी उग्र हो उठे और इन्होंने अंग्रेज अफसर सॉन्डर्स को मौत के घाट उतारा था।इसके बाद अंग्रेज़ सरकार दिल्ली की असेंबली में ‘पब्लिक सेफ्टी बिल’ और ‘ट्रेड डिस्प्यूट्स बिल’ लाने की तैयारी कर रही थी। दोनों ही बिल देश के लिए दमनकारी साबित होने वाले थे। अंग्रेजों की ऐसी ही नीतियों और अत्याचारों से विचलित भगत सिंह ने सेंट्रल असेंबली में बम फेंकने की योजना बनाई। 8 अप्रैल को क्रांतिकारी संगठन के सदस्य भगत सिंह ने अपने साथी बटुकेश्वर दत्त के साथ मिलकर असेंबली में बम फेंका। पड़ताल में पता चलता है कि असेंबली में बम फेंकने के मामले में भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त को 14 सालों के लिए जेल की सलाख़ों के पीछे भेज दिया गया लेकिन साउंडर्स की हत्या के मामले में भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फाँसी पर लटका दिया गया।
पड़ताल में हमे पता चला कि असेम्बली में बम फेंकने का मुकदमा 7 मई 1929 को शुरू हुआ और 12 जून 1929 को अदालत द्वारा भगत सिंह और दत्त दोनों को आजीवन कारावास की सजा सुनाए जाने के साथ समाप्त हुआ। इस मामले से संबंधित फैसले के डिजिटल रिकॉर्ड भारतीय संस्कृति पोर्टल (खंड 1 और खंड 2) पर उपलब्ध है। इन निर्णय दस्तावेजों में यह स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है कि भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त आरोपी हैं और आसफ अली दोनों के वकील हैं। इसके अलावा दस्तावेज़ में कहा गया है कि राय बहादुर सूरज नारायण ब्रिटिश सरकार के लिए सरकारी वकील थे।
इसके बाद हमने इतिहासकार ए जी नूरानी की किताब ‘द ट्रायल्स ऑफ भगत सिंह: पॉलिटिक्स ऑफ जस्टिस‘ का सहारा लिया। ए जी नूरानी की किताब के 32 वें पन्ने पर लिखा है, आसिफ अली ने भगत सिंह और बटू केश्वर के पक्ष में प्रतिनिधित्व किया जबकि राय बहादुर सूरज नारायण ब्रिटिश सरकार के पक्ष में प्रतिनिधित्व किया।’
इस किताब में नूरानी ने भगत सिंह द्वारा अपने पिता को लिखे एक पत्र का अंश साझा किया जिसमें उन्होंने एक कानूनी सलाहकार की मांग की है। पुस्तक में लिखा है, ‘वकील रखने की कोई आवश्यकता नहीं थी। लेकिन मैं कुछ मामलों पर कानूनी राय लेना चाहता हूं, लेकिन वे इतने महत्वपूर्ण नहीं हैं।’ यह किताब के एक अन्य अंश से भी स्पष्ट होता है जिसमें लिखा है, ‘आसिफ अली ने दावा किया कि मसौदा काफी हद तक भगत सिंह का था लेकिन उन्होंने भाषा को निखारा था।’
पड़ताल में हमे भगत सिंह का पिता के नाम पूरा खत भी मिला। 26 अप्रैल, 1929 को उन्होंने लिखा, ‘मुझे पता चला था कि आप यहाँ आये थे और किसी वकील आदि से बातचीत की थी लेकिन कोई इन्तज़ाम न हो सका। परसों मुझे कपड़े मिल गये थे। जिस दिन आप आयेंगे अब मुलाक़ात हो जायेगी। वकील आदि की कोई ख़ास ज़रूरत नहीं है। हाँ, एक-दो नुक्तों पर थोड़ा-सा मशवरा लेना चाहता हूँ, लेकिन वे कोई ख़ास महत्त्व नहीं रखते। आप बिना वजह ज़्यादा कष्ट न करें।’
4 अप्रैल 1930 को भगत सिंह ने स्पेशल मजिस्ट्रेट लाहौर के नाम खत में लिखा, ‘मेरा कोई वकील नहीं है और न ही मैं पूरे समय के लिए किसी को वकील रख सकता हूँ। मैं कुछ नुक्तों सम्बन्धी क़ानूनी परामर्श चाहता हूँ और एक विशेष पड़ाव पर मैं चाहता था कि वे (वकील) कार्रवाई को स्वयं देखें, ताकि अपनी राय बनाने के लिए वे बेहतर स्थिति में हों, लेकिन उन्हें अदालत में बैठने तक की जगह नहीं दी गयी।’
वहीं सॉन्डर्स की हत्या के लिए भगत सिंह, सुखदेव और राज गुरु को मौत की सजा सुनाई गई थी। 23 मार्च 1931 को तीनों को फाँसी दे दी गई। इस मामले में मामले से संबंधित डिजिटल दस्तावेज़ इंडियन कल्चर पोर्टल पर उपलब्ध हैं। दस्तावेज़ के मुताबिक लाला दुनी चंद ने भगत सिंह को इस विशेष मामले के संबंध में सलाह दी थी। दूसरी ओर आसिफ अली ने अदालत में बचाव पक्ष के वकील के रूप में सुखदेव का प्रतिनिधित्व किया था। दस्तावेज़ों के अनुसार, श्री नोआड ब्रिटिश ताज की ओर से सरकारी वकील के रूप में उपस्थित हुए।
पड़ताल को आगे बढ़ाते हुए हमने बम कांड में ब्रिटिश सरकार की ओर से वकील राय बहादुर सूर्यनारायण के बारे में जानकारी प्राप्त करने हेतु गूगल सर्च किया। सर्च के बाद हमें ऐसा कोई सबूत नहीं मिला जो यह साबित करता हो कि राय बहादुर सूर्यनारायण आरएसएस के सदस्य थे।
निष्कर्ष: भगत सिंह के खिलाफ दो मुकदमे थे। पहला सेंट्रल असेंबली बम विस्फोट का मामला है जिसमें भगत सिंह को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी। ‘सॉन्डर्स की हत्या’ मामले में ही भगत सिंह को मौत की सजा सुनाई गई थी। सॉन्डर्स हत्या मामले में लाला दुनी चंद ने भगत सिंह को अपना मामला लड़ने की सलाह दी थी जबकि श्री नोआड अभियोजक के रूप में ब्रिटिश सरकार के लिए उपस्थित हुए थे। वहीं असेंबली में बम के मामले में प्रसिद्ध कानूनी विद्वान एजी नूरानी ने अपनी पुस्तक में बताया है कि भगत सिंह ने आसफ अली को अपना सलाहकार बनाकर अपना केस खुद लड़ा था। भगत सिंह ने अपने खतों में वकील न लेने की बात स्वीकारी है जबकि राय बहादुर सूरज नारायण ब्रिटिश सरकार के लिए सरकारी वकील के रूप में पेश हुए। हालाँकि उनके आरएसएस या हेडगेवार से जोड़ने का कोई ठोस सबूत नहीं है। इसलिए पोस्ट में किया गया दावा भ्रामक है ।
दावा | भगत सिंह के खिलाफ ब्रिटिश सरकार का वकील राम बहादुर सुर्यनारायण आरएसएस के सदस्य थे |
दावेदार | वाजिद खान, अवि डांडिया और द दलित वॉयस |
फैक्ट चेक | गलत |
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