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Home अन्य क्या सूरत से बीजेपी उम्मीदवार मुकेश दलाल के निर्विरोध जीतने से संविधान खतरे में पड़ गया है?
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क्या सूरत से बीजेपी उम्मीदवार मुकेश दलाल के निर्विरोध जीतने से संविधान खतरे में पड़ गया है?

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कल, अर्थात् 22 मार्च, सूरत लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी मुकेश दलाल ने निर्विरोध जीत हासिल की। कांग्रेस उम्मीदवार नीलेश कुम्भानी के नामांकन पत्र को रद्द किये जाने के बाद, अन्य आठ उम्मीदवारों ने भी अपने नाम वापस लिए, जिसके बाद चुनाव आयोग ने बीजेपी प्रत्याशी को विजेता घोषित किया। इस घटना के बाद से, सोशल मीडिया पर विपक्षी दलों के नेताओं और समर्थकों ने मोदी सरकार के खिलाफ जोरदार हमले बोले। कांग्रेस नेता राहुल गांधी सहित अन्य विपक्षी नेताओं ने बीजेपी प्रत्याशी की निर्विरोध जीत पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को तानाशाही का आरोप लगाते हुए, संविधान की हत्या जैसे गंभीर आरोप लगाए।

कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने X पर लिखा, ‘तानाशाह की असली ‘सूरत’ एक बार फिर देश के सामने है!  जनता से अपना नेता चुनने का अधिकार छीन लेना बाबा साहेब अंबेडकर के संविधान को खत्म करने की तरफ बढ़ाया एक और कदम है। मैं एक बार फिर कह रहा हूं – यह सिर्फ सरकार बनाने का चुनाव नहीं है, यह देश को बचाने का चुनाव है, संविधान की रक्षा का चुनाव है।‘

कांग्रेस पार्टी ने लिखा, ‘आप क्रोनोलॉजी समझिए कि कैसे लोकतंत्र खतरे में है।

– सूरत में पहले कांग्रेस प्रत्याशी नीलेश कुंभानी का नामांकन रद्द किया गया। फिर सूरत से कांग्रेस के एक अन्य वैकल्पिक उम्मीदवार का नामांकन खारिज किया गया। 

– इसके बाद, BJP प्रत्याशी को छोड़कर बाकी सभी उम्मीदवारों ने अपना नामांकन वापस ले लिया।

– ऐसे में सूरत लोकसभा सीट से BJP प्रत्याशी मुकेश दलाल को ‘निर्विरोध’ विजयी घोषित कर दिया गया।

यह ‘मैच फिक्सिंग’ है, जो PM मोदी कर रहे हैं क्योंकि वह बुरी तरह डरे हुए हैं।

ये लोकतंत्र और संविधान को बचाने का चुनाव है, जिसे नरेंद्र मोदी खत्म करना चाहते हैं।‘

पत्रकार प्रभाकर कुमार मिश्रा ने लिखा, ‘सूरत में बीजेपी उम्मीदवार ‘निर्विरोध’ जीत गया है! यह न्यू -नॉर्मल है, स्वीकार कीजिए।‘

कांग्रेस नेता रितु चौधरी ने लिखा, ‘सूरत में जिस तरह से भाजपा उम्मीदवार को जिताया गया इससे साफ़ज़ाहिर है कि अगर मोदी जी और भाजपा दुबारा सत्ता में आयी तो देश के संविधान ख़त्म कर दिए जाएँगे।‘

आप नेता संजय सिंह ने लिखा, ‘मेरी बात सच साबित हुई चुनाव ख़त्म हो गया। सूरत में बिना चुनाव के BJP जीत गई। 2024 का चुनाव अंतिम चुनाव है BJP को हराओ वरना,संविधान ख़त्म होगा।वोट ख़त्म होगा।आरक्षण ख़त्म होगा।‘

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फैक्ट चेक

दावे की जाँच के लिए हमने मामले से संबंधित न्यूज़ रिपोर्ट की खोज की गई, जिसके बाद आजतक द्वारा प्रकाशित 22 अप्रैल 2024 की रिपोर्ट मिली। आजतक के मुताबिक, ‘सूरत लोकसभा सीट से कांग्रेस उम्मीदवार का नामांकन रद्द होने के बाद बाकी बचे 8 उम्मीदवारों ने भी अपने नाम वापस ले लिए हैं, जिसके बाद बीजेपी की निर्विरोध जीत हुई है। इसके साथ ही लोकसभा चुनाव में बीजेपी का खाता भी खुल गया है। सूरत लोकसभा सीट से कांग्रेस के कैंडिडेट निलेश कुम्भानी चुनाव अधिकारी के समक्ष अपने तीन में से एक भी प्रस्तावक को मौजूद नहीं रख पाए थे जिसके बाद चुनाव अधिकारी ने निलेश कुम्भानी का नामांकन फॉर्म रद्द कर दिया था। बीजेपी ने कांग्रेस के कैंडिडेट निलेश कुम्भानी के फॉर्म में उनके तीन प्रस्तावकों के हस्ताक्षर को लेकर सवाल उठाए थे।‘

आजतक ने अपनी रिपोर्ट में आगे लिखा, ‘निलेश कुम्भानी के प्रस्तावक में उनके बहनोई, भांजे और भागीदार के हस्ताक्षर होने का दावा किया गया था लेकिन तीनों प्रस्तावकों ने चुनाव अधिकारी के सामने कल एफिडेविट कर कहा था कि निलेश कुम्भानी के फॉर्म में उनके हस्ताक्षर नहीं है, जिसके बाद से तीनों प्रस्तावक गायब हो गए।चुनाव अधिकारी ने कांग्रेस के कैंडिडेट निलेश कुम्भानी के प्रस्तावक उनके बहनोई जगदीश सावलिया, उनके भांजे ध्रुविन धामेलिया और भागीदार रमेश पोलरा के निवेदन का वीडियो रिकॉर्डिंग भी किया था। प्रस्तावकों के दावे के बाद चुनाव अधिकारी ने जवाब देने के लिए कांग्रेस कैंडिडेट निलेश कुम्भानी को एक दिन का वक्त दिया था।कांग्रेस के कैंडिडेट निलेश कुम्भानी अपने एडवोकेट के साथ चुनाव अधिकारी को जवाब देने पहुंचे थे, लेकिन तीन में से एक भी प्रस्तावक मौजूद नहीं रहे।‘

Source- Aajtak

आजतक की रिपोर्ट से पता चलता है कि सूरत लोकसभा चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार नीलेश कुंभानी ने चुनाव अधिकारी के सामने अपने तीनों प्रस्तावों में से किसी एक को भी पेश नहीं किया, जबकि कांग्रेस प्रत्याशी के तीन प्रस्तावक उनके रिश्तेदार थे।

अब सवाल उठता है कि क्या यह देश का पहला मामला है जिसमें किसी प्रत्याशी की निर्विरोध जीत हुई हो ? ऐसा नहीं है। पहले भी बहुत से उम्मीदवार ऐसी जीतें हासिल कर चुके हैं।

टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, 1957 में सर्वाधिक सात उम्मीदवारों ने निर्विरोध जीत हासिल की थी, और इससे पहले 1961 और 1967 के चुनावों में पांच-पांच उम्मीदवारों ने निर्विरोध जीता था। वहीं, 1962 में तीन उम्मीदवारों ने निर्विरोध जीता और 1977 में दो, 1971, 1980 और 1989 में एक-एक उम्मीदवारों ने चुनावों को इसी प्रकार से जीता।

Source- Times of India

टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट में आगे लिखा गया, ‘समाजवादी पार्टी की डिम्पल यादव ने 2012 में कन्नौज लोकसभा उपचुनाव में अप्रत्याशित जीत हासिल की थी। डिम्पल सहित कम से कम नौ उम्मीदवारों ने अप्रत्याशित जीत प्राप्त की है। लोकसभा चुनावों में अप्रत्याशित जीत हासिल करने वाले प्रमुख राजनेताओं में वाई.बी. चव्हाण, फारूक अब्दुल्ला, हरे कृष्ण महतब, टी.टी. कृष्णमाचारी, पी.एम. सईद, और एस.सी. जमीर शामिल हैं। जिन उम्मीदवारों ने बिना किसी विरोध के लोकसभा में प्रवेश किया है, उनमें कांग्रेस से सबसे अधिक संख्या में हैं। सिक्किम और श्रीनगर में निर्विरोध चुनावों को दो बार देखा गया है।

Source- Times of India

निष्कर्ष: सूरत से कांग्रेस उम्मीदवार ने अपने नामांकन पत्र में दिए गए तीन प्रस्तावकों में से किसी एक ने भी चुनाव अधिकारी के सामने प्रस्तुत नहीं किया, जिसके कारण उनका नामांकन पत्र रद्द कर दिया गया। इसके अतिरिक्त, यह देश का पहला मामला नहीं है जब कोई प्रत्याशी निर्विरोध जीत दर्ज किया गया हो। इससे पहले भी आज़ादी के बाद से 35 उम्मीदवारों ने निर्विरोध जीता है, जिनमें सर्वाधिक कांग्रेस पार्टी के हैं।

दावासूरत में बीजेपी उम्मीदवार का निर्विरोध जीतना अभूतपूर्व है, और यह संविधान की हत्या है
दावेदारINDI गठबंधन के नेता
फैक्ट चेकभ्रामक

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