सोशल मीडिया पर भीड़ द्वार पत्थरबाजी का एक वीडियो तेजी से वायरल हो रहा है। वीडियो को सांप्रदायिक तनाव में पत्थरबाजी का बताकर शेयर किया जा रहा है। हालांकि पड़ताल में पता चला कि इस मामले में किसी भी प्रकार का सांप्रदायिक एंगल नहीं है।
voice of humans नाम के एक्स हैंडल ने लिखा, ‘किया कपड़े देख कर अब पत्थर बाजो की पहचान हो रही हैं’
IND Story’s ने लिखा, ‘किया कपड़े देख कर अब पत्थर बाजो की पहचान हो रही हैं क्या!?’
पायल गुप्ता ने लिखा, ‘पत्थर बाज़ों को कपड़ों से पहचान कर क्या अब इनके घर गिराने चाहिए या नहीं ????’
ध्रुव राठी के पैरोडी अकाउंट ने लिखा, ‘किया कपड़े देख कर अब पत्थर बाजो की पहचान हो रही हैं.’
वहीं नेशन मुस्लिम, मिस्टर कूल, Unrealistic Guy, ध्रुव राठी (पैरोडी) और आरके रजा ने भी इसी दावे के साथ वीडियो शेयर किया है।
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वायरल वीडियो की पड़ताल करने के लिए वीडियो के की-फ्रेम का रिवर्स इमेज सर्च किया गया। इस दौरान यह वीडियो हमें माँ बाराही धाम देवीधुरा नाम के इंस्टाग्राम अकाउंट पर अपलोड़ मिला। जिसके कैप्शन में ‘Bagwal 2024’ लिखा है।
इस जानकारी से गूगल सर्च करने पर हमें जागरण की एक रिपोर्ट मिली। जिसके मुताबिक बग्वाल उत्तराखंड में मनाया जाने वाला एक उत्सव है। चम्पावत देवीधुरा का ऐतिहासिक बग्वाल मेला असाड़ी कौतिक के नाम से भी प्रसिद्ध है। हर साल रक्षा बंधन के मौके पर बग्वाल खेली जाती है। माना जाता है कि देवीधूरा में बग्वाल का यह खेल पौराणिक काल से खेला जा रहा है।
रक्षाबंधन के दिन सुबह रणबाकुरे सबसे पहले सज-धजकर मंदिर परिसर में आते हैं। देवी की आराधना के साथ बग्वाल शुरू हो जाता है। बाराही मंदिर में एक ओर मां की आराधना होती है दूसरी ओर रणबाकुरे बग्वाल खेलते हैं। दोनों ओर के रणबाकुरे फूल, फल, पत्थर से युद्ध करते हैं। जब तक एक आदमी के बराबर खून न गिर जाए। बताया जाता है कि पुजारी बग्वाल को रोकने का आदेश जब तक जारी नहीं करते तब तक खेल जारी रहता है। इस खेल में कोई किसी का दुश्मन नहीं होता है। पूरे मनोयोग से बग्वाल खेली जाती हैं। इस खेल में कोई भी गंभीर रूप से घायल नहीं होता है। अंत में सभी लोग गले मिलते हैं।
निष्कर्ष: पड़ताल से स्पष्ट है कि वायरल वीडियो किसी सांप्रदायिक घटना में हुई पत्थरबाजी का नहीं है। असल में यह वीडियो उत्तराखंड में मनाया जाने वाला बग्वाल उत्सव का है।
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